________________
जैनधर्म-मीमांसा
निर्मल होना )। इसके अतिरिक्त इस पाठमें १० वाँ अतिशय भी नहीं है और ' जय जय शब्द होनेका' नया अतिशय बना दिया गया है । दर्शन प्राभृत टीकामें अनुकूल वायु बहनेका अर्थ 'वायुका पछेिसे आना' है और दूसरे पाठमें ' मन्द सुगन्ध पवनका चलना ' है । इसके अतिरिक्त दशभक्तिका तीसरा पाठ भी है जिसमें कुछ अतिशय प्रथम पाठके और कुछ दूसरे पाठके हैं। दूसरे अतिशय के विषयमें प्रथम तृतीय पाठमें विशेषता यह है कि सब लोग मागध और प्रीतिंकर देवकी कृपासे मागधी भाषामें बातचीत करते हैं । . म० महावीरकी भाषाके विषयमें अनेक प्रामाणिक और अप्रामाणिक मान्यताएँ प्रचलित हैं । एक मान्यता यह है कि उनकी वाणी सर्वांगसे. खिरती है परन्तु इसमें कुछ दम नहीं है । अरहंत भी मनुष्य हैं और वे मुखसे बोलते हैं । बोलते समय उनके ओंठ कैसे चलते हैं और उनके दाँत कैसे चमकते हैं इत्यादि वर्णन शास्त्रोंमें अनेक जगह आता है । इसलिये भाषाका प्रश्न ही विचारणीय है । भाषाके विषयमें निम्नलिखित मत मुझे मिले हैं: -
१-सामान्य मान्यता यह है कि म० महावीरकी भाषा आधी मागधी है और, आधी महाराष्ट्री आदि । इसका नाम अर्धमागधी है।'
२-अरहंतकी भाषा सार्वार्धमागधीया है। ' सर्वभ्यो हिता सार्वा, सा चासौ अर्धमागधीया, अर्धं मगधदेशभाषात्मकं अर्ध च सर्व भाषात्मकं....तथा परिणतया भाषया सकलजनानां भाषणसामर्थ्यसंभवात् ( दशभक्किटीका) अर्थात् उनकी भाषा ऐसी अर्धमागधी थी जिसे सब समझ सकें।