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________________ १४८ जैनधर्म-भीमासा कि उनका संघ चिरस्थायी हुआ। और आज भी उसने अपना असर थोड़ा बहुत कायम रक्खा है। इस प्रकार चार संघोंकी स्थापना और उनका संगठन म० महावीरकी अद्भुत कुशलता और लोकहितैषिताका परिचय देता है । त्रिपदी चतुर्विध संघकी स्थापना होनेके बाद म० महावीरने अपने मुख्य शिष्योंको त्रिपदी सुनाई, अर्थात् उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यका उपदेश दिया । वस्तु प्रतिसमय पैदा होती है, नष्ट होती है और स्थिर भी रहती है, इससे नित्यवाद, क्षणिकवाद आदिका समन्वय किया । इसे सुनकर उनके शिष्योंने द्वादशांगकी रचना की। इससे इतना तो मालूम होता है कि म० महावीरके शिष्योंने उनके उपदेशोंको पल्लवित किया है । यद्यपि यह काम एक दिन में नहीं हुआ था, इसे वर्षों लगे थे फिर भी यह निश्चित है कि ये उपदेश पल्लवित हुए हैं। ___ उनका उपदेश कुछ एक बातको लेकर न होता था । व्याख्यानमें वे कथा कहानी भी कहते थे, अन्य अनेक प्रकारके दृष्टान्तोंसे समझाते थे। उनके व्याख्यान तत्व-निर्णय और आचार सम्बन्धी होते थे और हर एक बातमें त्रिपदी या स्याद्वादका खयाल रखा जाता था। अपने वक्तव्यको स्पष्ट करनेके लिये वे जो दृष्टान्तादि देते थे वे उनके शिष्योंद्वारा स्वतन्त्र अङ्ग बन गये। जो दृष्टान्त विषयको स्पष्ट करनेके लिए या आचारमें दृढ़ बनानेके लिये दिये जाते थे वे पीछे भौगोलिक और ऐतिहासिक रूपमें परिणत हो गये। यहाँ हमें इतनी बात ध्यानमें रख लेना चाहिये कि भूवृत्त (लोक-रचना ) पुराण आदिके विषयमें जो सामग्री आज हमें जैन शास्त्रोंमें मिलती है
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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