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________________ कैवल्स और धर्मप्रचार १४१ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww.amarimmmm आज भले ही वह सुलभ हो गया है परन्तु वह उन्हींकी कृपासे सुलभ हुआ है जिनको कि बच्चा कहा जाता है । आज जिन बातोंको हम मामूली समझते हैं, सौ-पचास वर्ष पहिले अनेक वैज्ञानिकोंको उनकी कल्पना भी नहीं थी। क्या इसीलिये हम उनसे बड़े वैज्ञानिक हो गये । ऐसे वीसों उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनसे मालूम होगा कि जो आज विद्यार्थियोंके लिये भी साधारण है वह एक दिन वितानोंके लिये भी असाधारण था । (३) कुछ प्रश्न ऐसे हैं जो हजारों वर्षसे करीब करीब ज्योंकेत्यों बने हुए हैं और कब तक बने रहेंगे इसके विषयमें अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। जिसको जितनेमें संतोष हो जाता है वह उतनेको हो पूर्ण समाधान मान लेता है लेकिन पूर्ण समाधान बाकी रहता है। एक परलोकके ही प्रश्नको लीजिये । भक्त लोग और विद्यार्थी तो हर एक प्रश्नके विषयमें निःशंक होते हैं परन्तु विद्वानोंके सामने यह समस्या आज भी खड़ी है। बड़े बड़े विद्वानोंको परलोककी बात समझमें नहीं आती । इसका यह अर्थ नहीं है कि उनकी अक्ल उस विद्यार्थीसे भी कम है। दार्शनिक क्षेत्रमें और भी ऐसे प्रश्न हैं । एक मन-ही का प्रश्न ले लीजिये । दिगम्बर सम्प्रदाय मनका स्थान हृदय मानता है और कमलाकार कहता है, श्वेताम्बर सम्प्रदाय सागच्यापी मानता है, आधुनिक विद्वान् मस्तिष्कमें मानते है । वैशेषिक लोग १ हिदि होदिहु दव्बमणं वियसियअच्छदारविंदं वा । गोम्मटसार जी.-४४३ २ मनसः शरीरव्यापिनः।-रत्नाकरावतारिका १-२ तत्राय द्रव्यमानः स्वायपरिमाणम् । तत्वार्थ सिस्नगवी टीमन २-11
SR No.010098
Book TitleJain Dharm Mimansa 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1936
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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