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महात्मा महावीर
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कार्योको करते हुए भी वे निर्लिप्त रहते हैं । इस प्रकार तीर्थङ्कर बननेकी तैयारी उन्होंने बारह वर्षकी तपस्याके समय की थी। तपस्या करते समय उनको सैकड़ों प्रकारके अनुभव हुए थे । साधारण लोगोंको जिन अनुभवोंका कुछ भी मूल्य नहीं मालूम होता वे ही अनुभव, महात्मा लोगोंके युगान्तरकारी सुधार-कार्यमें, सहायक होते हैं । तीर्थप्रवृत्तिके लिये उन्होंने जो अनेक प्रकारके नियमोपनियम बनाये थे उनके पीछे उनका अनुभव था । महात्मा लोग जिन जिन घटनाओंसे शिक्षा लेकर नियम निर्माण करते हैं उन सबका पता इतिहासमें तो क्या, परन्तु उन महात्माओंके जीवन-समयमें भी नहीं मिलता । यही बात म० महावीरके विषयमें भी है। किन किन घटनाओंने उन्हें किन किन नियमोंको बनानेके लिये प्रेरित किया इसका पता आज नहीं लग सकता । फिर भी कुछ नियमोंके कारण हमें अवश्य मिल जायँगे, और उनसे हम बाकी नियमोंके कारणोंका थोड़ा बहुत अनुमान कर सकेंगे। ___ बारह वर्षकी तपस्यासे भगवान्को तीन चीजें मिलीं। पूर्ण वीतरागता, पूर्ण ज्ञान और तीर्थङ्करत्व । भक्त लोगोंने म० महावीरको जन्मसे ही तीर्थंकर मान लिया है; परन्तु जैनधर्मके कर्म-सिद्धान्तको जाननेवाला एक बालक भी इस बातको नहीं मान सकता । जन्मके समय किसी भी प्राणीको चतुर्थसे अधिक 'गुणस्थान' नहीं होता और जैनधर्मके अनुसार तीर्थंकरत्व तेरहवें गुणस्थानमें होता है । यह वह समय है जब तपस्या करनेके बाद मनुष्य पूर्ण वीतरागता और पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है । इसलिये महावीर तपस्याके बाद ४२ वर्षकी उमरमें तीर्थङ्कर बने थे । कर्म-सिद्धान्तका इतना स्पष्ट विवेचन होनेपर