________________
१०४
जैनधर्म-मीमांसा
आया करता था । परन्तु इस कामकी पूरी तैयारी न होने के कारण तथा माता - पिता आदिके आग्रहके कारण वे शीघ्र ही प्रत्रज्या न ले सके। इस तरह उनकी तीस वर्षकी उमर हो गई । दिगम्बरोंके कथनानुसार उनने विवाह नहीं कराया, श्वेताम्बरोंके कथनानुसार उनका विवाह हुआ और एक पुत्री भी पैदा हुई । तीर्थंकर विवाह करावें या अविवाहित रहें, जैनधर्मका इनमेंसे किसी बातसे विरोध नहीं है । इसलिये यहाँ इस बातपर उपेक्षा की जाती है । जब महावीरकी उमर २८ वर्षकी थी तब उनके माता- पिताका देहान्त हो गया । तीस वर्षकी उमरमें उन्होंने गृहत्याग किया ।
मालूम होता है कि उनके पास किसी दिन कुछ पुरुष आये और उन्होंने समाजकी दुर्दशाकी बात कही और कहा कि आप किसी ऐसे तीर्थकी स्थापना कीजिये जिससे इन अत्याचारोंका अन्त हो - समाजकी एक बार कायापलट हो जाय । उनकी प्रार्थनाने काम किया, महावीरने इस कार्यके लिये गृह-त्याग किया । महावीरसे प्रार्थना करनेवाले इन लोगोंको जैनशास्त्रों में 'लौकान्तिक देव' कहा गया है । पीछेसे इन लौकान्तिक देवोंका स्थान हर-एक जैन तीर्थंकरके जीवन-चरितमें बन गया है। इसी प्रकार दीक्षाके लिये महावीरको जो समारोह के साथ विदाई दी गई थी उसको भक्तोंने इन्द्रके द्वारा किया गया ' तप कल्याणक ' मान लिया है ।
तीर्थकी रचना के लिये महावीरको बहुत काम करना था। दूसरोंके दुःख दूर करनेके पहले, दुःख दूर करनेका उपाय क्या है, वह उपाय व्यवहारमें लाया जा सकता है कि नहीं, यदि लाया जा सकता है तो स्वयं उसे व्यवहारमें लाना, लोगोंकी सब शंकाओंका