________________
और शांति के उम्पादक भावों के चितवन मे ही हो सकता है। इसप्रकार मत के समभाव रूर (शांत ) होजाने पर उसे अपने उपासना के विषय में एकाग्र करने की आवश्यकता होती है क्योंकि बिना एसा किये अभीष्ट फल की सिद्धि होही नहीं सकती । मन की एकाग्रता का नत्रों से घनिष्ठ संबंध है । जो अपने नत्रों को वश में कर लेता है उसके लिये मन का एकाग्र करना आसान होजाता है अतः इस कार्य की मिद्धि के लिये मूनि के द्वारा उपामना करने वाले तो जिनेन्द्र की वीतराग छवि पर पि को स्थिर करके मन को एकाग्र करते हैं और दूसरे लोग, नामिका पर स्थिरकरके । मूर्ति के द्वारा दृष्टि को स्थिर करने का अभ्यास करने समय परमात्मा की उस सुंदर मूर्ति को एकटक देखते रहना चाहिय, न तो होता है इस पर विचार करना () संबर - कमाँ के श्रास्रव को रोकने के उपायों का चितवन करना। (६) निर्जरा-जिन उपायों से कमी से छुटकारा मिलता है उनका चितवन करना (१०) लोक भावना विश्व की विशाल और विश्वलीला का विचार करके उस मब पर विजय प्राप्त करने की शक्ति वाले प्रात्मा की शक्तियों काचितवन करना (११) बोधिदुर्लभ-प्रास्मोहार के मार्ग सम्यग्दर्शनशानचारित्र का प्राप्त होना अत्यंत कठिन है अतःप्राप्त होने पर उसे खोना न चाहऐ ।।१२) धर्मधर्म आत्मा का स्वभाव है और अदिसामई है।