________________
जैनधर्म
२. होयसल वंश । इस वंशकी उन्नतिमे भी एक जैनमुनिका हाथ था। इस 'वंशका पूर्वज राजा सल था । एक बार यह राजा अपनी कुलदेवीके मन्दिरमे सुदत्तनामके जैन साधुसे विद्या ग्रहण करता था। अचातक वनमेसे निकलकर एक बाघ सलपर टूट पड़ा। साधुने एक दण्ड सलको देकर कहा-'पोप सल' (भार सल)। सलने वाधको मार डाला। इस घटनाको स्मरण रखनेके लिये उसने अपना नाम पोपसल' रखा, पीछेसे यही 'होयसल हो गया। । गंगवंशकी तरह इस वशके राजा भी विट्टिदेव तक बराबर जैनधर्मी रहे और उन्होंने जैनधर्मके लिये बहुत कुछ किया। दीवान बहादुर कृष्ण स्वामी आयंगरने विष्णु वर्द्धन विट्टिदेवके समयमें मैसूर राज्यकी धार्मिक स्थिति बतलाते हुए लिखा है- 'उस समय मैसूर प्राय. जैन था। गंग राजा जैनधर्मके अनुयायी थे। किन्तु लगभग ई० १००० में जैनोंके विरुद्ध वातावरण ने जोर पकड़ा । उस समय वोलोने मैसूरको जीतनेका प्रयत्न किया । फलस्वरूप गगवाड़ी और नोलम्बवाड़ीका एक बड़ा प्रदेश चोलोके अधिकारमें चला गया, और इस तरह मैसूर देशमे चोलोके शवधर्म और चालुन्योंके जैनधर्मका आमना सामना हो गया । जब विष्णुवर्धनने मैसूरकी राजनीतिमे भाग लिया उस समय मैसूरकी धार्मिक स्थिति अनिश्चित थी । यद्यपि जैनधर्म प्रबल स्थितिमें था फिर भी शवधर्म और वैष्णव धर्मके भी अनुयायी थे। ई० १११६ के लगभग विट्टिदेवको रामानुजाचार्यने वैष्णव बना लिया और उसने अपना नाम विष्णुवर्धन रखा ।' विष्णुवर्धनकी पहली पत्नी शान्तलदेवी जैन थी। श्रवणवेलगोला तथा अन्य स्थानोंसे प्राप्त शिलालेखोमे उसके धर्मकायोकी बड़ी प्रशंसा की गई है । शातल देवीका पिता कट्टर शेव और माता जैन थी। शान्तल देवीके मर जाने पर जब उसके माता पिता भी मर गये तो
१. Ancient India. P. 738-739