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इतिहास उसे स्वीकार करना पड़ा। लेविस राइसने सर्व प्रथम इन शिला लेखोंकी खोजकी और उनका अनुवाद करके विद्वानोके लिये उन्हें सुलभ बना दिया। उनके इस मतका कि चन्द्रगुप्त जन था और वह दक्षिण आया था, मि० थामस जैसे प्रमुख विद्वानोने जोरस समर्थन किया। 'जैन धर्म अथवा अगोकका पूर्व धर्म' शीर्षक अपन रेखमे वह कहते हैं-'चन्द्रगुप्त जैन था' इस बातको लेखकोने स्वाभा विक घटनाके रूपमे लिया है और उसे इस रूपमे माना है जैसे वह एव ऐसी सत्य घटना है, जिसके लिये न तो किसी प्रमाण की आवश्यकता और न प्रदर्शन की। इस घटनाक लेख्य प्रमाण अपेक्षाकृत प्राचीन है और स्पष्ट रूपसे सन्देह रहित है। क्योकि उनकी सूचीमे अशोकक नाम नहीं है। अशोक अपने दादा चन्द्रगुप्तसे बहुत अधिक शक्ति गाली था और जैन लोग उसके सम्बन्धमे सयुक्तिक ढगस यह दाव कर सकते थे कि वह जैन धर्मका प्रबल समर्थक था । कही अशोक अपना धर्म परिवर्तन तो नही कर लिया था। मेगास्थिनीजकी साक्ष भी यही सूचित करती है कि चद्रगुप्तने श्रमणोकी धार्मिक शिक्षाओके स्वीकार किया था और ब्राह्मणोके सिद्धान्तोको वह नहीं मानत था ।" इस प्रकार साधारणतया विद्वान् इस विषयमे एकमत है वि चन्द्रगुप्त जैन था। ___चन्द्रगुप्तने राज्य त्याग दिया था और वह श्रवणवेल गोलामे जैन साधु होकर मरा, इस वातका समर्थन स्व० डा० वी० ए० स्मिथन अपने 'भारतका प्राचीन इतिहास' नामक ग्रन्थके प्रथम सस्करण किया था। चन्द्रगुप्तकी मृत्युका उल्लेख करते हुए मि० स्मिथ कहर है कि-'चन्द्रगुप्त छोटी अवस्था में ही राजसिंहासन पर बैठ गय था और चुकि उसने केवल चौबीस वर्ष राज्य किया। अत ५८ वर्षकी अवस्थासे पूर्व अवश्य ही उसका मरण हो जाना चाहिये
१ जर्नल आफ दी रायल सिरीज, लेख ८ । २ स्टडीज इन साउथ इन्डियन जैनिज्म, पृ० २२ ।
में ही राज्य किया। चाहिये