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इतिहास
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पहले वह बुद्धका आश्रयदाता बना था। किन्तु उस समय वह सद्भावनापूर्वक बौद्धधर्मानुयायी बना था, यह तो हम नही मान। सकते। कारण यह है कि जो मनुष्य खुली रीतिसे अपने पिताका खूनी था तथा अपने नानाके साथ जिसने लडाई लड़ी थी वह मनुष्य अध्यात्मज्ञानके लिये बहुत उत्सुक हो यह असंभव है। उनके धर्मपरिवर्तन करनेका क्या उद्देश्य था इसका हम सरलतासे अनुमान कर सकते है। बात यह है कि उसने अपने नाना वैशालीके राजाके : साथ युद्ध किया था। यह राजा महावीरका मामा (नाना) था और
जनोका संरक्षक था । इसलिये इसक ऊपर चढाई करनेके कारण अजातशत्रु जैनोको सहानुभूति खो बैठा। इससे उसने जैनोके प्रतिस्पर्धी बौद्धोके साथ मिलनेका निश्चय किया था।'
आगे डा० याकोबी लिखते हैं
'अजातशत्रु एक तो वैशालीको जीतनेमे सफल हुमा था, दूसरो उसने नन्दो और मौर्योक साम्राज्यका पाया खडा किया था। इसर • प्रकार मगध साम्राज्यकी सीमा बढनेसे जैन और बौद्ध दोनों। धर्मोके लिये नया क्षेत्र खुल गया था। इससे वे दोनो तुरन्त ही उस क्षेत्रमे फैल गये । जब दूसरे सम्प्रदाय स्थानीय और मा यी महत्त्व प्राप्त करके ही रह गये तव ये दोनोधर्म इतनी बड़ी सफलता प्राप्त करनम समर्थ हुए थे। इसका मुख्य कारण अन्य कुछ। नहीं, केवल यह मंगलकारी राजनैतिक संयोग था।' ___हमारे मतसे जैनो और बौद्धोकी सफलताका कारण केवल" राजनैतिक संयोग नही था, किन्तु फिर भी वह एक प्रवल कारण अवश्य था। अस्तु ।
नन्दवंश
(६० पू० ३०५) उदायीके बाद मगधके सिंहासनपर नन्दवंशका अधिकार हुमा ! महाराज खारखेलके शिलालेखसे पता चलता है कि महाराज नन्दने