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इतिहास
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४ - भगवान महावीरके पश्चात् जैनधर्मकी स्थिति
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भगवान महावीरके सम्बन्धमें जैन और बोद्धसाहित्यसे जो कु ...नकारी प्राप्त होती है, उसपरसे यह स्पष्ट पता चलता है महावीर एक महापुरुष थे, और उस समयके पुरुषोपर उनका मान सिक और आध्यात्मिक प्रभाव बडा गहरा था । उनके प्रभाव दीर्घदृष्टि और निस्पृहताका ही यह परिणाम है जो आज भी जन् धर्म अपने जन्मस्थान भारतदेशमें बना हुआ है जब कि बोद्ध " शताब्दियो पूर्व यहाँसे लुप्त-सा हो गया था ।
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भगवान महावीरका अनेक राजघरानोंपर भी गहरा प्रभाव था M भगवान महावीर ज्ञातृवशी थे और उनकी माता लिच्छवि गणतंत्र प्रधान चेटककी पुत्री थी। ईसासे पूर्व छठी शताब्दीमें पूर्वीय भारत लिच्छवि राजवश महान और शक्तिशाली था । डा० याकोवीने लिख है कि जब चम्पाके राजा कुणिकने एक बड़ी सेनाके साथ रा चेटकपर आक्रमण करनेकी तैयारी की तो चेटकने काशी औ कौशलके अट्ठारह राजाओको तथा लिच्छवि और मल्लोको बुलाय और उनसे पूछा कि आप लोग कुणिककी मांग पूरा करना चाहते ! अथवा उससे लडना चाहते है ? महावीरका निर्वाण होनेपर इ घटनाकी स्मृतिमें उक्त अट्ठारह राजाओने मिलकर एक महोत्सव मनाया था ।'
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इससे स्पष्ट है कि उस समयके प्रमुख राजवग प्रत्यक्ष य परोक्ष रूपसे महावीरसे प्रभावित थे ।
इसके सिवाय भगवान महावीरके ग्यारह प्रधान शिष्य ये जिनमे मुख्य गौतम गणधर थे । भगवान महावीरके पश्चात् उन शिष्योमेसे तीन केवल ज्ञानी हुए गौतम गणधर, सुधर्मास्वामी श्री जम्बूस्वामी । तथा इनके पश्चात् पाँच श्रुतकेवली हुए - विष्णु, न मित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु । अन्तिम श्रुत केवली मद्रव