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जैनधर्म बवाो । महावीरका जन्म चत्र शुक्ला त्रयोदशीके दिन हुआ था। इस नकदन भारतवर्षमे महावीरकी जयन्ती बडी धूमसे मनाई जाती है । कोहहावीर सचमुचमें महावीर थे। एक वार बचपनमे ये अन्य वालकोके
चाथि खेल रहे थे। इतनेमे अचानक एक सर्प कहीसे आ गया और यकोनकी ओर झपटा । अन्य वालक तो डरकर भाग गये किन्तु महाहाडोरने उसे निर्मद कर दिया। महावीर जन्मसे ही विशेप ज्ञानी थे। रेघाक वार एक मुनि उनको देखने के लिये आये और उनके देखते ही निकनिके चित्तमें जो शास्त्रीय शकाएँ थी वे दूर हो गई । जव महावीर
डे हुए तो उनके विवाहका प्रश्न उपस्थित हुआ, किन्तु महावीरका भवत्त तो किसी अन्य ओर ही लगा हुआ था। उस समय यज्ञादिकका नहुत जोर था और यज्ञोमे पशु-बलिदान बहुतायतसे होता था। वेचारे
क पशु धर्मके नामपर वलिदान कर दिय जाते थे और 'वैदिकी हिंसा पतासा न भवति' की व्यवस्था दे दी जाती थी। करुणासागर महावीरके
तानोतक भी उन मूक पशुओंकी चीत्कार पहुंची और राजपुत्र महामनोरका हृदय उनकी रक्षाके लिये तडप उठा। धर्मके नामपर किये जानेवाले किसी भी कृत्यका विरोध कितना दुष्कर है यह बतलानेकी आवश्यकता नही। किन्तु महावीर तो महावीर ही थे। ३० वर्षकी उम्रमे उन्होने घर छोडकर वनका मार्ग लिया और भगवान ऋषभदेवकी ही तरह प्रव्रज्या लेकर ध्यानस्थ हो गये। र महावीरके जन्म आदिका वर्णन करनेवाली कुछ प्राचीन गाथाएँ
मिलती है जिनका भाव इस प्रकार हैलि १ "सुरमहिदोच्चुदकप्पे भोग दिवाणुभागमणभूदो। आ
पुप्फूतरणामादो विमाणदो जो चुदो सतो॥ बाहत्तरिवासाणि य योवविहीणाणि लद्धपरमाऊ । आसाढजोण्हपक्खे छटठीए जोणिमुवयादो॥ कुण्डपुरपुरवरिस्सरसिद्धत्यक्सत्तियस्स णाहकुले । तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए । अच्छित्ता णवमासे अ य दिवसे चइत्तसियपक्से ।
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