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जैनधर्म
महावीरका जो कुलझमागत सम्बन्ध था तथा उनपर जो प्रभाव था उसे देखते हुए ऐसा हो सकना असभव तो नहीं कहा जा सकता। मझिमनिकायके सामगामसुत्तके अनुसार जब चुन्द महात्मा बुद्ध प्रेय शिष्य आनन्दको महावीरके मरनेका समाचार देता है तो आयुष्यमान् मानन्द कहते है-'आवुस चुन्द | भगवान बुद्धके दर्शनके लिए 'यह बात भेट स्वरूप है।' इस घटनासे ही स्पष्ट हो जाता है कि अपने समयमें महावीर भगवान्का कितना प्रभाव था। __ इसके सिवा दीपावली के पूजनकी जो पद्धति प्रचलित है, उससे भी इस समस्यापर प्रकाश पड़ता है। दीपावलीके दिन क्यों लक्ष्मीजन होता है इसका सन्तोपजनक समाधान नहीं मिलता। दूसरी र, जिस समय भगवान् महावीरका निर्वाण हुमा उसी समय उनके धान शिप्य गौतम गणघरको पूर्ण ज्ञानकी प्राप्ति हुई। यह गौतम
ह्मण थे। मुक्ति और ज्ञानको जनधर्ममें सबसे बडी लक्ष्मी माना है और प्राय मुक्तिलक्ष्मी और ज्ञानलक्ष्मीके नामसे ही शास्त्रोम उनका 'ल्लेख किया गया है। अत सम्भव है कि आध्यात्मिक लक्ष्मीक 'जनकी प्रथाने धीरे-धीरे जनसमुदायमें वाह्य लक्ष्मीके पूजनका रूप
लिया हो। वाह्यष्टिप्रधान मनुष्यसमाजमे ऐसा प्राय. देखा आता है। लक्ष्मीपूजनके समय मिट्टीका घरौंदा और खेल खिलौने से रखे जाते है। हमारे बड़े कहा करते थे कि यह घरोदा भगवान् हावीर अथवा उनके शिष्य गौतम गणधरकी उपदेश सभा (समवरण) की यादगारमें है और चूंकि उनका उपदेश सुननेके लिये नुष्य पशु सभी जाते थे अत उनको यादगारमे उनकी मूर्तियाँ (खिलौने) खे जाते है। इस तरह दीपावली के प्रकाशमे हम प्रतिवर्ष भगवान्की गर्वाण लक्ष्मीका पूजन करते है। और जिस रूपमें उनकी उपदेश भा लगती थी उसका साज सजाते है ।
दीपावलीके प्रात.कालमें सभी जैन मन्दिरों में महावीर निर्वाणस्मतिम बड़ा उत्सव मनाया जाता है और नैवेद्य (लाडू) से भगवान