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नवर्म सरिक पर्वको केन्द्र मानकर उसके साथ उससे पहलेक सातादन मिलकर भाद्रपद कृष्ण १२ ते शुक्ला चौथतक आठ दिन श्वेताम्बर सम्प्रदायमें 'पर्युषण' कहे जाते है । दिगम्बर सम्प्रदायमें आक वदले दस दिन माने जाते है। और श्वेताम्बरोंके पर्युषण पूरा होना दूसरे दिनसे दिगम्बरोंका दशलाक्षणी पर्व प्रारम्भ होता है। साथ सरिक पर्वमें गतवर्ष में जो कोई वैर विरोध एक दूसरेके प्रति हो गया हो, उसके लिये 'मिच्छामि दुक्कड' 'मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ऐस कहकर क्षमायाचना की जाती है। इस पर्वका सन्मान मुगलबादशा तरी करते थे। सम्राट् बकवरले जनाचार्य हीरविज्य सूरिक उपदेश भावित होकर पर्युषण पर्वमें हिंसा वन्द रखनेका फर्मान अपने सान्न यमें जारी किया था।
अष्टान्हिका पर्व दिगम्बर सम्प्रदायका दूसरा महत्त्वपूर्ण पर्व अष्टालिका पर्व है। यह पर्व कातिक, फाल्गुन और आसाढ मासके अन्तके आठ दिनोम मनाया जाता है। जैन मान्यताके अनुसार इस पृथ्वीपर आवा नन्दीश्वर द्वीप है। उस द्वीपमे ५२ जिनालय बने हुए है। उनकी पूजा करनेके लिये स्वर्गसे देवगण उक्त दिनोंमें जाते है। चूंकि मनुष्य वहाँ तक जा नहीं सकते इसलिये वे उक्त दिनो पर्व मनाकर यहीपर पूजा कर लेते हैं। इन्ही दिनोमें सिद्धचक्र पूजा विधानका आयोजन किया जाता है। यह पूजा महोत्सव दर्शनीय होता है। श्वेताम्वरोम
भी पर्युपणके बाद सबसे महत्वका जैन पर्व सिद्धचक्र पूजा विधान ही है। किन्तु उनमें यह पूजा वर्षमें दो वार-वैत्र और आसोजमें होती है, और नप्तमीले पूनम तक ६ दिन चलती है।
महावीर जयन्ती चैत्र शुक्ला प्रयोदशी भगवान महावीन्की जन्मतिथि है। दिन भारतवर्षयो नमी जैन बपना पारोबार बन्द गलकर ने अपने न्यानोपर बही धन-धामने महावीरकी जयन्ती मनाते हैं। प्रातार