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विविध
सेनापति आभू आभू श्रीमाली जैन राजपूत था। वह पक्का धर्माचरणी था। गुजरातके अन्तिम सोलंकी राजा भीमदेवका सेनाध्यक्ष था। अभी वह इस पदपर नया ही नियुक्त हुआ था और भीमदव अनुपस्थित थे। ऐसे समयमै मुसलमानोने राजधानीपर आक्रमण कर दिया । 'रानीको चिंता हुई किन्तु आभूके उत्साहप्रद वचनोंसे विश्वस्त होकर रानीने युद्धकी घोषणा कर दी और युद्धका भार आभूको सौंप दिया।
आभू अपने दैनिक धर्म-कर्मका बडा पक्का था। युद्धके मैदानमे सन्ध्या होते ही वह तलवार म्यानमें रखकर हाथी के हौदेपर ही आत्म। ध्यानमे लीन हो गया । यह देखकर लोग कहने लगे कि यह जनी क्या
लडेगा। किन्तु नित्यकृत्य करनेके बाद ही सेनापतिकी तलवार चमकने लगी और मुसलमानोंके सेनापतिको हथियार डालकर सन्धिकी प्रार्थना करनी पड़ी।
जयपुर के जैन दीवान । जयपुर राज्यके दीवान पदको बहुत वर्षोंतक जैनोने सुशोभित किया है, और राज्यको अनुशासित, सुखी तथा समृद्ध करनेमे स्तुत्य हाथ बटाया है तथा उसकी रक्षाके लिए बहुत कुछ किया है। यहाँ एक दो उदाहरण दिये जाते है। ___ जब औरगजेवका पुत्र बहादुरशाह भारतका सम्राट् बना तो उसने आमेरपर कब्जा कर लिया और सवाई जयसिंहको राज्य छोडना पड़ा, तब दीवान रामचन्द्रने सेना सगठित करके आमेरपर चढाई कर दी और आमेरपर पुन. जयसिहका अधिकार हो गया । । इसी तरह दीवान रायचन्दजी छावड़ा भी जयपुर नरेशके प्रिय
और विश्वासपात्र थे। स० १८६२ मे जव जयपुर और जोधपुरमे उदयपुरकी राजकुमारीको लेकर झगडा हुआ तव जोधपुरमें वशी सिंघी इन्द्रराज और दीवान रायचन्दने मिलकर झगडेको खत्म किया । किन्तु बादको लड़ाईकी नौबत आगई और दीवान रायचन्द