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सामाजिक रूप
३ यापनीय संघ जैनधर्मके दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायोंसे तो साधारणत सभी परिचित है। किन्तु इस बातका पता जनोमेसे भी कम है को है कि इन दोके अतिरिक्त एक तीसरा सम्प्रदाय भी था जिर यापनीय या गोप्यसंघ कहते थे। ___यह सम्प्रदाय भी बहुत प्राचीन है। दर्शनसारके' कर्ता श्रा देवसेनसूरिके कथनानुसार वि० सं २०५ मे श्रीकलश नामके श्वेता म्बर साधुने इस सम्प्रदायकी स्थापना की थी। यह समय दिगम्बर: श्वेताम्बर भेदकी उत्पत्तिसे लगभग ७० वर्ष बाद पडता है।।
किसी समय यह सम्प्रदाय कर्नाटक और उसके आस पास बहुर प्रभावशाली रहा है। कदम्ब, राष्ट्रकूट और दूसरे वंशोंके राजाओन इसे और इसके आचार्योको अनेक दान दिये थे।
यापनीय संघके मुनि नग्न रहते थे, मोरके पंखोंकी पिच्छी रखते थे और हाथम ही भोजन करते थे। ये नग्न मूर्तियोको पूजते थे और वन्दना करनेवाले श्रावकोंको 'धर्म-लाम' देते थे। ये सब बातें तं, इनमें दिगम्बरों जैसी ही थी, किन्तु साथ ही साथ वे मानते थे । स्त्रियोंको उसी भवमे मोक्ष हो सकता है और केवली भोजन कर है। वैयाकरण शाकटायन (पाल्यकीर्ति) यापनीय थे। इनकी र अमोघवृत्तिके कुछ उदाहरणोसे मालूम होता है कि यापनीय ५ आवश्यक, छेदसूत्र, नियुक्ति, और दशवकालिक आदि ग्रन्थोंका पठन पाठन होताथा,अर्थात् इन बातोमे वे श्वेताम्बरोके समानथे। वताम्बर मान्य जो आगमग्रन्थ है यापनीय सघ सभवत उन सभीको मानता किन्तु उनके आगमोंकी वाचना श्वेताम्बर सम्प्रदायमे मानी जानेवार वलभी वाचनासे शायद कुछ भिन्न थी। उनपर उसकी टीकाएँ भी, सकती है जैसा कि अपराजितसूरिकी दशवकालिक सूत्रपर टीका थी १ "कल्लाणे वरणयरे दुणिसए पच उत्तरे जादे।।
जावणियसघभावो सिरिकलसादो हु सेवडदो ॥२९॥"