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सामाजिक रूप
इन चार संघों के भी आगे अनेक भेद-प्रभेद हो गये । साधारणत संघों के भेदोंको गण और प्रभेदों या उपभेदोको गच्छ कहने की परम्परा मिलती है। कही कही संघोंको गण भी कहा है, जैसे नन्दिगण, सेनगण आदि । कही कही संघों को 'अन्वय' भी कहा है, जैसे 'सेनान्वय' । गणोंमें बलात्कारगण, देशीयगण और काणूरगण इन तीन गणोंके और गच्छों में पुस्तकगच्छ, सरस्वतीगच्छ, वक्रगच्छ और तगरिलगच्छके उल्लेख पाये जाते है । इन संघ, गण और गच्छोंकी प्रव्रज्या आदि। ' क्रियायोंमें कोई भेद नही है ।
किन्तु दर्शनसारमें कुछ ऐसे भी सघोंकी उत्पत्तिका उल्लेख किया। + जिन्हें उसमें जैनाभास वतलाया गया है । वे सघ है - श्वेताम्बर,
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नीय, द्राविड़, माथुर और काष्ठा। इनमेसे पहले दो सघोका वर्णन कागे किया गया है, क्योकि उनसे आचारके अतिरिक्त दिगम्बरोका सिद्धान्तभेद भी है । शेष तीन जैनसंघ दिगम्बर सम्प्रदायके ही अवान्तर संघ है तथा उनके साथ कोई महत्त्वका सिद्धान्तभेद भी नही है । दर्शन ! सार' के अनुसार वि० सं० ५२६ मे दक्षिण मथुरामें द्राविड़ संघकी उत्पत्ति हुई। इसका संस्थापक माचार्य पूज्यपादका शिष्य वज्रनन्दि या । इसकी मान्यता है कि वीजमे जीव नही रहता, कोई वस्तु प्रासुक नही है । इसने ठंडे पानीसे स्नान करके और खेती वाणिज्यसे जीवन निर्वाह करके प्रचुर पापका संचय किया ।
वि० सं० ७५३ मे काष्ठासंघकी उत्पत्ति हुई। इसका संस्थापक कुमारसेन मुनि था । इसने मयूरपिच्छको छोड़कर गायके बालोंकी पिच्छी धारण की थी, और समस्त वागडदेशमे उन्मार्गका प्रसार किया १ 'सिरिपुज्जपादसीसो दाविडसघस्य कारगो दुट्ठो । णामेण वज्जणदी पाहुडवेदी महासत्यो ॥ २४ ॥ वीएस गत्यि जीवो उन्भसण णत्थि फासुग गत्थि । सावज्जण हुमण्णइ ण गणइ गिहकप्पिय अट्ठ ॥२६॥ कच्छ खेत्तं वसहि वाणिज्ज कारिऊण जीवतो । गहतो सीयलणीरे पाव पउरं समज्जेदि ||२७||