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जैनधर्म
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रचनाएं की है। वीनती, पूजापाठ, धार्मिक भजन, आदि भी पर्या संस्है । पद्य साहित्यमे भी अनेक पुराण और चरित रचे गये है । ग्रन्थ हिन्दी जैन साहित्यकी एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उस शान्तरसकी सरिता ही सर्वत्र प्रवाहित दृष्टिगोचर होती है। संस्कृ जन और प्राकृतके जैन ग्रन्थकारोके समान हिन्दी जैन ग्रन्यकारों का भी ए ग्रन्थही लक्ष्य रहा है कि मनुष्य किसी तरह सांसारिक विषयोके फन्दे अवनिकलकर अपने को पहचाने और अपने उत्थानका प्रयत्न करे। इ नीलिक्ष्यको सामने रखकर सबने अपनी अपनी रचनाएँ की है । हिन् जैजैन साहित्यमे ही नहीं, अपि तु हिन्दी साहित्यमे कविवर वनारसीदा इसजीकी आत्मकथा तो एक अपूर्व ही वस्तु है । उनका नाटक सम इस्सार भी अव्यात्मका एक अपूर्व ग्रन्थ है ।
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श्वेताम्बर - साहित्य
वह
पाटलीपुत्रमे जो अग संकलित किय गये थे, कालक्रमसे वे : सम्बव्यवस्थित हो गये तव महावीर निर्वाणकी छठी शताब्दी में व स्कन्दिलको अध्यक्षतामे मथुरामे फिर एक सभा हुई और उसमे फि शेपवचे अंग साहित्यको सुव्यवस्थित किया गया। इसे माथुरी वाच कहते हैं। इसके बाद महावीर निर्वाणकी दसवी गतीमे बल्लभी नग (काठियावाड) मे देवाणि क्षमाश्रमणके सभापतित्वमे फिर 'सभा हुई। इसमें फिरसे ग्यारह अगोका संकलन हुआ । वारहवाँ को पहले ही लुप्त हो चुका था । अवतक स्मृतिके आगरपर ही अ 'साहित्यका पठन-पाठन चलता था, किन्तु अव वीर नि० स० ।
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( ई० स० ४५३ ) के लगभग उन्हें पुस्तकारूड किया गया । विद्यम जैन आगमोकी व्यवस्था अपने सम्पादक देवगिणिकी मुख्य आभारी है। उन्होने इन्हें अध्याय में विभक्त किया। जो भाग
गये थे उन्हें अपनी बुद्धि के अनुसार सम्बद्ध किया । डा० जेकोब १ अन्न नामाचारी धनवमे लिखा है"श्रीमान श्रीवीगद् वर्गीयधिक नवा - (९८ द्वानिमान् बहुतरा व्यापती बहुश्रुतविच्छित
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