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जैन साहित्य कोषमें धनंजय नाममाला और विश्वलोचन कोश, अलकारमें अलकार चिन्तामणि, गणितमे महावीर गणितसार सग्रह और राजनीतिमे सोमदेवका नीतिवाक्यामृत आदि स्मरणीय है।
यह तो हुआ सस्कृत और प्राकृत साहित्यका विहगावलोकन' ।
द्रवेडियन भाषाओमे भी जैनाचार्योने खूब रचनाएं की है। उन्हीके कारण एक तरहसे उन भाषाओको महत्त्व मिला है। कनडी भाषामे रचना करनेवाले अति प्राचीन कवि जैन थे। कन्नड साहित्यको उन्नत, प्रौढ और परिपूर्ण बनानेका श्रेय जैनाचार्यो और जैन कवियोको ही प्राप्त है। तेरहवी शताब्दी तक कन्नड़ भाषाके जितने प्रौढ ग्रन्यकार हुए वे सब जैन ही थे। 'पप भारत' सदृश महाप्रबन्ध और 'शब्दमणिदर्पण' सदृश शास्त्रीय ग्रन्थोको देखकर जैन कवियोके प्रति किसे आदर बुद्धि उत्पन्न नहीं होती। कर्नाटक गद्य ग्रन्थोमे प्राचीन 'चामुण्डरायपुराण' के लेखक वीरमार्तण्ड चामुण्डराय जैन ही थे। आदि पप, कविचक्रवर्ती रन्न, अभिनव पप, कत्तिदेवी आदि कवि जैन ही थे। ____ 'कर्नाटक कवि चरिते' के मूल लेखक आर० नरसिहाचार्यने जनकवियोके सम्वन्धमे अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा है-"जैनी कन्नड़ भाषा के आदि कवि है। आज तक उपलब्ध सभी प्राचीन और उत्तम कृतियाँ जैन कवियोकी ही है। विशेषतया प्राचीन जैन कवियों के कारण ही कन्नड भाषाका सौन्दर्य एव कान्ति है । पप, रन्न और पोनको कवियोमे रत्न मानना उचित है । अन्य कवियोने भी १४वो शताब्दीके अन्त तक सर्वश्लाघ्य चम्पूकाव्योकी रचना की है । कन्नड भाषाके सहायक छन्द, अलकार, व्याकरण, कोष आदि ग्रन्थ अधिकतया जैनियोके द्वारा ही रचित है।" ___ यहाँ यह वतला देना अनुचित न होगा कि दक्षिण और कर्नाटकका जितना जैन साहित्य है वह सब ही दिगम्बर जैन सम्प्रदायके विद्वानोंकी रचना है । तथा दिगम्बर सम्प्रदायक जितने प्रधान-प्रधान आचार्य है वे प्राय सव ही कर्नाटक देशके निवासी थे और वे न केवल