________________
चारित्र
१८१ पत्नीको कामवासनाका केन्द्र बनानेसे कोई यह न समद कि एकपलीवत या विवाह अनियत्रित कामाचारका सर्टिफिकेट है वह तो कामरोगको शान्त करनेकी औषधि है। स्तम्भक और उत्तेजब औषधियोके द्वारा रोगको बढाकर स्त्रीरूपी औषधिका अधिक सेवन करना तो औषधिके साथ अत्याचार करना है। ऐसे अत्याचारके फल 'स्वरूप ही आजकल विवाहित लडके और लड़कियाँ क्षय रोगसे ग्रस्त होकर अकालमें ही कालके गालमे चले जाते है । अत अनियंत्रित कामाचार भी आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्यको चौपट कर देता है, इसलिये उससे भी बचना ही चाहिये।
प्रत्येक सद्गृहस्थको नीचे लिखी बातोसे बचनेकी सलाह दी गई है
१-दुराचारिणी स्त्रियोसे बचते रहो । २-मुंहसे अश्लीर बातें मत वको। ३-शक्ति से अधिक काम सेवन मत करो। ४, अप्राकृतिक मैथुनसे बचो। ५-और दूसरोंके वैवाहिक सम्बन्धोद
झगड़े में मत पड़ो। जो बाते पुरुषोंके लिए कही गई है वे ही स्त्रियों लिये भी है। स्त्रियोंको भी पर-पुरुष और अधिक कामाचारसे वचना चाहिये, और अपनेको संयत रखनेकी चेष्टा करना चाहिये।
५. परिग्रह परिमाणवत स्त्री, पुत्र, घर, सोना आदि वस्तुओंमें 'ये मेरी है। इस तरहका जो ममत्व रहता है, उस ममत्व परिणामको परिग्रह कहते है। और ममत्वको घटाकर उन वस्तुओके घटानेको परिग्रह परिमाणवत कहते है। लोकमें तो रुपया पैसा जमीन जायदाद ही परिग्रह कहलाता है। , किन्तु वास्तवमे तो मनुष्यका ममत्वभाव परिग्रह है। इन वाहिरी
चीजोंको तो उस ममत्वका कारण होनेसे परिग्रह कहा जाता है। यदि बाहिरी चीजोंको ही परिग्रह माना जायेगा तो जिन असंख्य लोगोंके पास कुछ भी नही, किन्तु उनके चित्तमें बड़ी-बडी आकांक्षाएं है वे सब अपरिग्रही कहलायेगे। किन्तु वात ऐसी नही है। सच्चा अपरिग्रही वही है जिसके पास कुछ भी नहीं है और न जिसके चित्तमे किसी