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आत्मा के मनन के लिए नित्य चार काम करें
(1) अरिहंत सिद्ध परमात्मा की भक्ति पूजा करें। (2) आचार्य, उपाध्याय, साधु इन तीन प्रकार के गुरुओं की सेवा करके तत्त्वज्ञान को ग्रहण करें। (3) तत्त्व प्रदर्शक ग्रन्थों का अभ्यास करें। (4) एकान्त में बैठकर सवेरे-सांझ कुछ देर सामायिक करे व भेद विज्ञान से अपनी व पर की आत्माओं को एक समान शद्ध विचारें व राग द्वेष की विषमता मिटावे। श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने दंसणपाहुड में कहा है
छह दव्व णव पयत्था पंचत्थी सत्त तच्च णिहिट्ठा। सद्दहइ ताणरुवं सो सद्दिट्ठी मुणेयव्वो19॥ जीवादीसद्दहणं सम्मत्तं जिणवरेहिं पण्णत्तं।
ववहारा णिच्छयदो अप्पाणं हवइ सम्मत्तं॥२०॥ जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश, काल ये द्रव्य हैं। काल को छोड़कर पांच अस्तिकाय हैं। जीवादि सात तत्त्व तथा पुण्य पाप मिलाकर नौ पदार्थ हैं। उन सबका जो श्रद्धान करता है वह सम्यग्दृष्टि जानना योग्य है। जिनेन्द्र ने कहा है कि जीवादि का श्रद्धान व्यवहार सम्यक्त्व है व अपने ही आत्मा का यथार्थ श्रद्धान निश्चय सम्यक्त्व है। योगीन्दु देव कहते हैं कि अपनी आत्मा व जिनेन्द्र प्रभु में भेद नहीं
सुद्धप्पा अरुजिणवरहं भेउ म किंपि वियाणि। मोक्खहं कारणे जोइया णिच्छई एउ विजाणि॥२०॥
(योगसार) हे योगी अपने शुद्धात्मा में और जिनेन्द्र में कोई भी भेद मत समझो मोक्ष का साधन निश्चय से यही है।
आगे आचार्य श्री परमात्मप्रकाश में लिखते हैं
जेहउ णिम्मलु णाणमउ, सिद्धहिँ णिवसइ देउ।
तेहउ णिवसइ बंभु परु, देहहं में करि भेउ॥२६॥ जैसे निर्मल ज्ञानमय परमात्म देव सिद्धगति में निवास करते हैं, वैसे ही परमब्रह्म परमात्मा इस शरीर में निवास करता है, सिद्ध भगवान तथा अपने में कुछ भेद न जानो। आगे द्रव्यसंग्रह की 34वीं गाथा की टीका में ब्रह्मदेव सूरि कहते हैं
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