SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्दर्शन का चौथा सोपान : सम्यक्त्वावरण जिण्णाणदिट्ठिसुद्धं पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं। विदियं संजमचरणं जिणणाणसदेसियं तं पि॥ - अष्टपाहुइ-चारित्रपाहुड, 5 सम्यक्त्व का चौथा सोपान सम्यक्त्वाचरण है। जब जीव को आत्मा और आत्मा से भिन्न वस्तु का ज्ञान हो जाता है अर्थात् 'मैं शरीरादि से भिन्न अखण्ड, अविनाशी शुद्धात्म तत्त्व भगवान आत्मा हूँ, ये शरीरादि मेरे नहीं न ही मैं इनका हूँ" तब उसे पर से भिन्न निज आत्मा की रुचि पैदा हो जाती है, और संसार शरीर भोगों से अरुचि पैदा हो जाती है। और वह हमेशा आत्म सन्मुख रहने का पुरुषार्थ किया करता है, क्योंकि इनके होते हुए उसके इतने निर्मल परिणाम होंगे ही नहीं। वह हमेशा जिनदेव की कही हुई जिनवाणी माँ और दिगम्बर गुरु के उपदेश के अपने आचरण में लाकर अपनी मंजिल की तरफ (सच्चे सुख) बढ़ता जाता है। एक दिन ऐसा आता कि वह सर्व परिग्रह को त्याग, आत्मा में लीन हो, सर्वकर्मों को काटकर सदा के लिए इस दु:खद संसार से पार हो जाता है और आदि अनन्त तक अतिन्द्रिय आनन्द भोगता है। अगर आप लोग भी सच्चे सुख को प्राप्त करना चाहते हैं तो आज के प्रवचन ध्यान से सुनकर आचरण में लाना। आचार्य कुन्दकुन्द समयसार में कहते हैं अहमेक्को खलु सुद्धो दंसणणाणमइयो सदारूवी। ण वि अस्थि मज्झा किं चि वि अण्णं परमाणुमेत्तं पि॥ (समयसार गाथा 38) मैं एक दर्शन-ज्ञानमय नित शुद्ध हूँ रूपी नहीं। ये अन्य सब पर द्रव्य किंचित मात्र भी मेरे नहीं। निश्चय से मैं एक हूँ, शुद्ध हूँ, दर्शन-ज्ञानमय हूँ, सदा अरूपी हूँ, और अन्य जो पर द्रव्य हैं वे किंचित मात्र, अणुमात्र भी मेरे नहीं है। अन्तरात्मा (सम्यग्दृष्टि) का स्वरूप बताते हुए आचार्य योगीन्दु कहते हैं जो परियाणइ अप्पु परु जो परभाव चएइ। सो पंडिउ अप्या मुणहु सो संसाररु मुएइ॥८॥ जो कोई आत्मा और पर को अर्थात् आपसे भिन्न पदार्थों को भले प्रकार पहचानता है तथा जो अपने आत्मा के स्वभाव को छोड़कर अन्य सब भावों को त्याग देता है। वही पंडित 67
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy