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________________ राग भंग होते ही वैरागी की स्थिति जब जीव को स्व-पर भेद विज्ञान हो जाता है तब उसको सम्यक्त्व प्राप्त होता है। उसकी दृष्टि सम्यक् हो जाती है। अब इसे बाह्य विषय भोगों में रस नहीं आता। भोग सामग्री से उसे स्वतः ही अन्तरंग से कुछ उदासीनता हो जाती है। गृहस्थ में रहते हुए भी उसे पूर्ववत रस आना बन्द हो जाता है। उसे संसार के इस जंजाल से मानो कंपकंपी छूटने लगती है। घर में संचित पदार्थों का ढेर देखकर उसका मस्तिष्क हिलने लगता है। जिस कमरे को उसने बड़ी रुचि से सजाया था आज वही मानो उसे खाने को दौड़ रहा है। वह संसार-शरीर-भोगों से उदासीन हो जाता है। संसार के पापों के प्रति भयभीत रहने लगता है। यह वैराग्य की स्थिति ही आगे चलकर उसको मुक्ति प्रदान करती है। जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब वह संसार के किसी प्रलोभन या आकर्षण में नहीं फंसता। इसको समझने के लिए निम्न दृष्टान्त को दखें। जम्बूकुमार से जम्बूस्वामी मगध देश के राजगृह नगर में राजा श्रेणिक राज्य करते थे। इस नगरी में वृषभदत्त नाम का सेठ रहते था, इसके एक पुत्र का नाम जम्बूकुमार था। वह स्वभाव से सौम्य, रूपवान, मिष्ठभाषी, भद्र, दयालु और वैराग्य से युक्त व्यक्तित्व के स्वामी थे। बाल अवस्था में इसने समस्त विद्याओं की शिक्षा पायी थी। इनके गुणों की सुरभि चारों ओर फैलने लगी थी, वे कामदेव के समान सुन्दर रूप के धारक थे। इन्हें देखकर नगर की नारियाँ अपनी सुध-बुध खो बैठती थी। किन्तु जम्बूकुमार पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, क्योंकि उनका इन्द्रिय विषयों के प्रति कोई राग नहीं था। जम्बूकुमार जब युवा हुए तब पिता ने इनका विवाह चार कन्याओं से होना तय कर दिया। इधर एक दिन राजा श्रेणिक जम्बूकुमार को युद्ध के लिए बाहर भेज देते हैं। युद्ध राज रत्नचूड से होता है जो मृगांग की चारों कन्याओं को लेना चाहता था। उनकी कन्याओं का विवाह जम्बूकुमार से नहीं होने देता था। युद्ध में विजय प्राप्त कर जम्बूकुमार वापस आते हैं, किन्तु रास्ते में दिगम्बर मुनिराज सुधर्म स्वामी का उपदेश सुन विरक्त हो जाते हैं। संसार के भोग क्षणभंगुर दिखने लगते हैं। यहाँ से चल महल वापस आते हैं। महल में आकर पिता जी से कहते हैं कि-"पिताजी मैं शादी नहीं करूंगा, मुझे संसार बन्धन तोड़ना है। ये संसार के सब भोग नाशवान हैं।" पिता कहते हैं कि-"बेटा ये महल कितने सुन्दर हैं, ये सब तुम्हारे लिए हैं, इनको कौन भोगेगा?" माता भी बहुत समझाती है किन्तु जम्बूकुमार दीक्षा लेने की ही बात करते हैं। पिता चारों कन्याओं के पिता को सूचना दे देते हैं कि अब जम्बूकुमार विवाह नहीं कराना चाहते, उसे संसार के भोगों से वैराग्य हो चुका है। किन्तु कन्याओं को जब सूचना मिलती है तब वे कहती हैं कि हम भी अब किसी से विवाह नहीं करेंगी, यदि विवाह होगा तो जम्बूकुमार से ही - 434
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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