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छानकर प्रयोग करता है। यहाँ यह बात दृष्टव्य है कि अन्य मतों में भी इस प्रकार की अहिंसा को जीवन में पर्याप्त स्थान दिया गया है।
अहिंसा और जैनेतर धर्म जल छानकर प्रयोग करने के सन्दर्भ में-मनु महाराज कहते हैं कि
दृष्टिपूतं न्येसत्पादं, वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।
सत्यपूतां वदेद्वाचं, मनः पूतं समाचरेत। अर्थात्-नीचे दृष्टिकर ऊँचे-नीचे स्थान को देखकर चलें, वस्त्र से छानकर जल पीवे, सत्य से पवित्र करके वचन बोले और मन से विचार कर आचरण करें।
उक्त श्लोक से स्पष्ट है कि जल छानकर पीना एक ऐसी क्रिया है जिसे वैदिक परम्परा में भी माना गया है। इसका उद्देश्य हिंसा से बचना तथा आत्मकल्याण करना ही है। ___रात्रिभोजन त्याग के सन्दर्भ में अर्जुन को उपदेश देते हुए महाभारत शान्तिपर्व में कृष्ण द्वारा कहा गया हैं कि
चत्वारि नंर्कद्वार, प्रथम रात्रिभोजनम्। द्वितीयं परस्त्रीगमनं चैव, सन्धानानन्तकायकम्॥ ये रात्रौ सर्वदाऽऽहारि, पर्जयन्ति सुमेधसः।
तेषां पक्षोपवासस्य. फलं मासेन जायते।। चार कार्य नरक के द्वार रूप हैं, जिसमें सबसे पहला रात्रि भोजन करना है, दूसरा पर स्त्री सेवन करना है, तीसरा अचार खाना और चौथा अनन्तकाय अर्थात् कन्दमूल खाना है। इसलिए जो सुबुद्धि वाले मनुष्य सर्वरात्रि में भोजन का त्याग करते हैं, वे एक महीने में एक पक्ष के उपवास का फल प्राप्त करते हैं। मार्कण्डेय पुराण में मार्कण्डेय महर्षि लिखते हैं कि
अस्तं गतं दिवा नाथे, आपो रुधिर मुच्यते।
अन्नं मासं समं प्रोक्तं, मार्कण्डेय महर्षिभिः।५३॥ अर्थात् सूर्य अस्त होने पर भोजन करना, माँस खाने और रुधिर पीने के समान है।
इन दो श्लोकों से यह बात सिद्ध हो जाती है कि आठमूलगुण को धारण करना और सात व्यसनों का त्यागी होना ही सदगृहस्थ के संयम का प्रथम आधार है। यही संयम भविष्य में मोक्षमार्ग प्रशस्त करता है।
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