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अष्टद्रव्यों द्वारा जिनेन्द्र भगवान की पूजा की जाती है, उसे नित्यमह या नित्यपूजा
कहते हैं। 2. चतुर्मुख (सर्वतोभद्र या महामह) पूजा-मण्डलेश्वर राजाओं के द्वारा भक्तिपूर्वक
जो जिनपूजा की जाती है, उसके नाम चतुर्मुख, सर्वतोभद्र और महामह पूजा है। जिनको सामन्त आदि के द्वारा मुकुट बाँधे गये हैं उन्हें मुकुटबद्ध या मण्डलेश्वर कहते हैं। वे जब भक्तिवश जिनदेव की पूजन करते हैं तो उस पूजा को सर्वतोभद्र पूजा कहते हैं। यह पजा सभी प्राणियों का कल्याण करने वाली होती है। इसलिए इसे सर्वतोभद्र कहते हैं। यह एक चतुर्मुख मण्डप में की जाती है इसलिए चतुर्मुख कहते हैं।
अष्टाह्निका की अपेक्षा महान् होने से यह महामह पूजा कहलाती है। 3. कल्पद्रुमपूजा-जिस पूजा में कल्पवृक्षों के समान चक्रवर्तियों द्वारा संसार की आशा
पूर्ण की जावे अर्थात् याचकों को इच्छानुसार दान दिया जावे उसको कल्पद्रुम पूजा
कहते हैं। 4. नैमित्तिकपूजा-जो उचित अवसर पर बिम्बप्रतिष्ठा आदि महोत्सव के समय पञ्चकल्याणक
आदि की पूजन की जाती है, उसको नैमित्तिक पूजा कहते हैं। 5. अष्टाह्निका पूजा-जो पूजन नन्दीश्वर द्वीप में देवताओं द्वारा आठ दिनों तक की जाती
हैं, उसे अष्टाह्निका पूजा कहते हैं। यह पूजन एक वर्ष में तीन बार की जाती है1. कार्तिक शुक्ला से पूर्णिमा तक; 2. फाल्गुन शुक्ला से पूर्णिमा तक; और
3. आषाढ़ शुक्ला से पूर्णिमा तक यह पूजा की जाती है। 6. इन्द्रध्वज पूजा-अकृत्रिम चैत्यबिम्बों की पञ्चकल्याणकों में देवताओं के साथ
इन्द्र-प्रतीन्द्र, सामानिक के द्वारा जिनपूजा की जाती है, उसको इन्द्रध्वज पूजा कहते हैं। यह पूजन मनुष्यों की सामर्थ्य से बाहर है। इन्द्रों की सामर्थ्य से सम्पन्न होने के कारण इसे इन्द्रध्वज पूजा कहते हैं।
दूसरा आवश्यक : गुरूपास्ति गुरुओं को आहार दान देने की विधि (नवधा भक्ति) गुरुओं को आहार दान नवधा भक्तिपूर्वक दिया जाता है। दूसरे शब्दों में साधुओं को आहार दान देने से पहले श्रावक-श्राविका नौ प्रकार से विनय प्रस्तुत करते हैं, उसे नवधा भक्ति कहते हैं। ये निम्न हैं1. पड़गाहन-इस भक्ति में निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है___ 1. साधु के आने से पूर्व, पूर्ण शुद्धि व विवेक के साथ हाथों में कलश, श्रीफल, सूखे
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