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नहीं था, दूसरा पदार्थ था, अतः उस समय उसी का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव था। अब किसी ने पूछा कि यहाँ घड़ा है कि नहीं, तो कह दिया कि यहाँ घड़ा है-सो यह असत्य
वचन का भेद है क्योंकि नास्ति रूप वस्तु को अस्तिरूप कहा 3. तीसरा भेद
जो पर वस्तु अपने स्वरूप से है, उसे पर रूप से कहना। दूसरे शब्दों में जिस वचन में यद्यपि पदार्थ अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप अपने चतुष्टय में विद्यमान है तथापि उस पदार्थ को अन्य पदार्थ रूप से कथन करना, इसे ही असत्य वचन का तीसरा भेद कहते हैं। आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं
वस्तु सदपि स्वरूपात् पररूपेणाभिधीयते यस्मिन्। अमृतमिदं च तृतीयं विज्ञेयं गौरिति यथाऽश्वः॥
- पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 94 जिस वचन में अपने चतुष्टय से विद्यमान होने पर भी पदार्थ अन्य स्वरूप से कहने में आता है, उसे यह तीसरा असत्य जानना चाहिए। जैसे बैल को घोड़ा कहना। अर्थात् किसी क्षेत्र में बैल अपने चतुष्टय में स्थित था। वहाँ किसी ने पूछा कि यहाँ क्या है, तो किसी ने कहा
है कि यहाँ घोडा है-इस प्रकार वस्तु को अन्य रूप से कहना असत्य ही है। 4. चौथा भेद
चौथा असत्य वचन सामान्य रूप से गर्हित, पाप सहित और अप्रिय-इस तरह तीन प्रकार का माना गया है, जो कि वचन रूप है। दूसरे शब्दों में-(1) वचन से निन्दा के शब्द कहना, (2) हिंसा सहित वचन बोलना (3) अप्रिय अर्थात् जो दूसरे को बुरे लगे ऐसे वचन बोलना। ये चौथे असत्य वचन के तीन भेद हैं। (1) वचन से निन्दा के शब्द कहने के सन्दर्भ में आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं
पैशून्यहासगर्भं कर्कशमशमञ्जसं प्रलपितं च। अन्यदपि यदुत्सूत्रं तत्सर्वं गर्हितं गदितम्॥
- पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 96 जिस वचन में दुष्टता हो, दूसरे को बुरा करने वाला हो तथा अपने को रौद्र ध्यान कराने वाला हो तथा हास्य मिश्रित हो, दूसरे जीव का मर्म छेदने वाला हो, कठोर वचन तथा जो वचन मिथ्या श्रद्धा कराने वाला हो और अप्रमाण रूप तथा शास्त्र विरुद्ध हो, उसे गर्हित वचन कहते हैं।
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