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________________ आठवें, नवमें, दसवें, बारहवें ( क्षपक श्रेणी की अपेक्षा) तेरहवें गुणस्थान में चौदहवें गुणस्थान में गुणस्थान में : कुल संख्या 8,99,99,997 ये तीन कम नौ करोड़ मुनिराज भावलिंगी ही होते हैं, द्रव्यलिंगी नहीं होते । दिगम्बर मुनिराजों की प्राचीन परम्परा-तीर्थंकर महावीर की परम्परा में अनेक दिगम्बर आचार्य हुए हैं। जैसे- आचार्य भद्रबाहु, आचार्य धरसेन, आचार्य पुष्पदन्त, आचार्य भूतबली, आचार्य वीरसेन स्वामी, आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी, आचार्य उमास्वामी, आचार्य समन्तभद्र, आचार्य अकलंकदेव, आचार्य विद्यानन्द, आचार्य अमृतचन्द, आचार्य जयसेन आदि । पन्द्रहवीं शताब्दी में तरनतारन आचार्य हुए जिनके संघ में अनेक मुनिराज थे। 1. आचार्य शान्तिसागर (दक्षिण) परम्परा आचार्य धर्मसागर मुनियों की वर्तमान परम्परा - सोलहवीं शताब्दी से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक लगभग तीन सौ साल तक दिगम्बर मुनियों का अभाव सा रहा और इस दौरान भट्टारकों के हाथ में धर्म का प्रचार रहा। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में, सर्वप्रथम चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्ति सागर (दक्षिण) (दीक्षा - सन् 1919 - समाधि सन् 1955), एवं आचार्य श्री शांतिसागर जी " छाणी” महाराज ने दिगम्बर मुनिराजों की परम्परा को शुरू किया। इनकी गुरु-शिष्य परम्परा निम्न प्रकार है आचार्य अजितसागर आचार्य आदिसागर ( वर्तमान में ) (मुनि दीक्षा - सन् 1919; समाधि-सन् 1955 ) आचार्य वीरसागर 2,392 आचार्य शिवसागर 8,98,502 598 आचार्य वर्द्धमानसागर (वर्तमान में) 267 आचार्य ज्ञानसागर आचार्य विद्यासागर (वर्तमान में )
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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