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________________ करूँ कि कौन अधिक होशियार है ज्ञानी है। दोनों ही पुत्र ज्ञानी दिखते थे निर्णय करना बहुत कठिन था सोच रहा था किस पर राज्य भार डालूँ? कौन सार्थक सिद्ध होगा? जब यह बात सभासदों, मंत्रियों को मालूम हुई तो उन्होंने कहा कि बड़े पुत्र को परम्परानुसार राज्य सौंप दीजिये किन्तु जब उन्हें राजा के मंतव्य का पता चला कि राज्य योग्यतानुसार ही सौंपना है तो मंत्रियों ने सलाह दी कि नगर के बाहर एक योग्य साधु रहता है। जब नगर में किसी पर किसी भी प्रकार की विपदा आती है तो वह उससे पूछने जाते हैं। वह निष्पक्ष न्याय करता है। राजा ने भी साधु के पास जाकर उसे अपनी उलझन बतादी । साधु ने कहा एक काम करो। अपने दोनों बेटों को कुछ रूपये दे दो और उनसे कहना कि इन रूपयों से अपने-अपने कमरों को ऐसी चीजों से भर दो जिससे उसमें जरा भी जगह खाली न रहे। राजा ने घर जाकर ऐसा ही किया। जब दोनों बेटों को यह पता चला कि थोड़े से धन में अपने-अपने कमरों को पूरा-पूरा भरना है तब दोनों सोच-विचार कर युक्ति लगाने लगे। बड़े पुत्र ने निर्णय लिया कि मैं अपने कमरे को कूड़े-कचरे से भर दूंगा, बस कूड़े को लाने का खर्चा उठाना पड़ेगा, उसने ऐसा ही किया। कम पैसों में कमरा पूरा सामान से भरने का उसे और कोई उपाय नहीं दिखा। कमरे में से दुर्गन्ध आने लगी तथा दूर-दूर तक फैलने लगी। कमरे के पास खड़ा होना भी कठिन हो गया किन्तु राज्य के लोभ में वह सब सहता रहा। छोटा पुत्र भी निरन्तर कम पैसों में अपने कमरे को पूरा भरने का उपाय सोच रहा था। परीक्षा का दिन करीब आ रहा था, कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ और क्या न करूँ तब वह सोचने लगा कि मैं भी क्यों न अपने बड़े भाई वाला ही कार्य कर डालूँ। फिर सोचने लगा कि कचरे से भरना भी कोई भरना है? इससे तो हार ही स्वीकार कर लेना अच्छा है। मैं अपनी प्रतिष्ठा को क्यों खोऊँ, अतः ऐसा मैं नहीं करूँगा। यह धन सम्पति भी तो एक कचरा है। उसे युक्ति सूझी कि उसी फकीर साधु के पास जाकर सलाह माँगनी चाहिए। वह उसी साधु के पास जाता है और अपनी व्यथा सुनाता है। कहता है, मुझे आप पर पूर्ण श्रद्धा है और जो भी आप कहेंगे मैं करूँगा । साधु कहता है, घबराओ नहीं, मेरी कुटिया से बाहर निकलो और उगते हुए सूर्य को देखो, उपाय तुम्हें स्वयं मिल जावेगा। दुनिया के समस्त आत्म वेत्ताओं ने इतना ही कहा कि आँख खोलकर देखने पर सब कुछ मिल जाता है। राजा का छोटा पुत्र बाहर आता है और आँख खोल कर देखता तब उसे तुरन्त उपाय मिल जाता है। खुशी-खुशी वह वापस अपने महल में आ जाता है। सायंकाल परीक्षा की घड़ी आ जाती है परन्तु तब तक उसका कमरा खाली था । बड़ा पुत्र दुर्गन्ध के बीच रहकर भी काफी खुश था क्योंकि उसे अपनी जीत के लक्षण दिखाई पड़ रहे थे। इतने में राजा के मंत्री और निर्णायक सब उसके कमरे में पहुँच जाते हैं। वे 187
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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