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ऐसे कितने प्रसंग इनके जीवन के साथ संलग्न हैं। सच में जब व्यापार भी उत्कर्ष पर था और छोटी बेटी और बेटे किशोर भी नहीं हुए थे तभी आचार्य 108 श्री विमलसागर जी महाराज से स्वीकृत आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का वर्षों तक निरतिचार शीलव्रत का पालन करते हुए मिति फाल्गुन सुदी दशमी वि.स. 2037 में 15 मार्च 1981 को रामपुर मनिहारान (सहारनपुर) में समाधि सम्राट आचार्य प्रवर गुरु 108 श्री शांतिसागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की और आप ब्र० प्रेमचन्द से पूज्य 105 श्री क्षुल्लक कुलभूषण जी बन गए। संभवत: आचार्य श्री शांतिसागर जी (हस्तिनापुर वाले) भी भली भांति जानते थे ऐसे तेजस्वी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व का धनी शिष्य ही मेरे कुल का अलंकरण हो सकता है. जैसे शिष्य वैसे ही गुरु और जैसे गुरु वैसे ही शिष्य । न जाने कितने वर्ष प्रेमचन्द्र जी ने छाया की भांति रहकर गुरुचरणों में व्यतीत किए थे। सुयोग्य गुरु को सुयोग्य शिष्य का मिलना सहज नहीं होता । प्रारम्भ से ही सम्पूर्ण जैन समाज को प्रसन्न और समृद्ध देखने की ही आपकी भावना रही है और अब तो पूर्णतया समाज के ही मध्य हैं।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली आदि जितने भी प्रदेशों में आचार्य श्री के चातुर्मास अथवा विहार हुए वहाँ-वहाँ उनके आशीर्वाद ने मूर्त रुप लिया है। हरियाणा प्रान्त के अम्बाला नगर में त्यागी भवन, गन्नौर में शिखर युक्त मन्दिर, धर्मशाला, आचार्य श्री शांन्तिसागर हाईस्कूल व डिग्री कालेज, औषधालय, गुहाना में जैन इण्टर कालिज, सोनीपत में त्यागी भवन, जैन पाठशाला का विकास एवं मन्दिर का जीर्णोद्धार, हांसी में भूगर्भ से प्राप्त 57 प्रतिमाएं स्थापित करने हेतु भूमि प्राप्त कर मन्दिर निर्माण, उत्तर प्रदेश मेंगाजियाबाद में पक्षी चिकित्सालय एवं श्री शांतिनाथ पब्लिक स्कूल (निर्माणधीन), कैराना में त्यागीभवन, धर्मशाला एवं श्री मन्दिर जी का जीर्णोद्धार, सरधना में कुन्दकुन्द जिनवाणी भवन (शहर), कुन्दकुन्द अतिथि भवन ( मण्डी), बावली में औषधालय एवं पाठशाला का विकास, छपरौली (मेरठ) में श्री दि. जैन मन्दिर जी का जीर्णोद्धार, रथ निर्माण, औषधालय, धर्मशाला, त्यागी भवन, प्राइमरी स्कूल, गर्ल्स डिग्री कालेज, रामपुर मनिहारान (सहारनपुर) में त्यागी भवन निर्माण एवं श्री सुपार्श्वनाथ दि. जैन मन्दिर का जीर्णोद्धार, नकुड (सहारनपुर) में त्यागी भवन निर्माण तथा राजधानी दिल्ली के उपनगरोंशाहदरा गली नं. 10 में त्यागी भवन, कैलाश नगर में त्यागी भवन एवं धर्मशाला निर्माण आशोक विहार फेज-1 में त्यागी भवन का विकास, दिलशाद गार्डन में विशाल भव्य जैन मन्दिर आपकी ही पावन प्रेरणा एवं मंगल आशीष का अमृत फल है। शिक्षा के प्रति आपका अनुराग विशेष है। आपकी प्रेरणा से ही गन्नौर (हरियाणा) का विद्यालय तो भारत का वह पहला विद्यालय है जहाँ शिक्षक, विद्यार्थी और कर्मचारी विद्यालय में चमड़े का उपयोग नहीं करते।
महापुरुषों के साथ संघर्ष और उपसर्ग तो संभवतः अपनी उग्रता दिखाये बिना नहीं रहते, ब्रह्मचारी अवस्था से ही उपसर्ग आपके साथ रहे। एक बार चिलकाना में मधुमक्खियों ने भंयकर आक्रमण किया। सारा समाज दुःख में डूब गया पर आपने शान्ति से, सहजता से उपसर्ग को सहा । शारीरिक, वैचारिक किसी भी प्रकार की विपरीतता में आप धैर्य नहीं छोड़ते। आप तो अहर्निश यही सोचते हैं कि मानव मात्र के लिए ऐसी कौन सी व्यवस्था दी जाए जिससे वह भी शांति के वातावरण में जीवन यापन कर सके। ग्राम से लेकर विश्व तक के लिए शांति का सुखद वातावरण निर्मित किया जाय जिससे विषमता
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