SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य श्री धर्मभूषण जी महाराज जीवन परिचय सभ्यता एवं संस्कृति की भूमि कौरव पाण्डवों की कर्मस्थली भगवान ऋषभदेव की विहारस्थली, तीर्थङ्करों की कल्याणक भूमि के रूप में प्रसिद्ध धर्मनगरी हस्तिनापुर की प्राकृतिक सुषमा का निकटस्थ साक्षी ग्राम करनावल (मेरठ) पूज्य आचार्य 108 श्री धर्मभूषण महाराज जी की पवित्र जन्म स्थली है। एक लघु शिशु को माता श्रीमती हुकमा देवी जी और पिता श्री डालचन्द्र ने 65 वर्ष पूर्व जन्म दिया था। 2 पुत्रों (श्री सलेक चन्द्र जैन एवं श्री रूपचन्द्र जैन) तथा दो पुत्रियो ( श्रीमती कमला देवी एवं श्री जयमाला जैन) के साथ ही पुत्र प्रेम चन्द्र खेले, पले और बढ़े पिताजी की आशीष छाया बहुत कम समय साथ रही। दोनों भाईयों ने ही प्रेमचन्द को पिता तुल्य वात्सल्य प्रदान किया। किसे ज्ञात था कि वह लघु शिशु एक तेजस्वी दिव्यात्मा है जो भविष्य में विश्व के कल्याण और सुरक्षा हेतु अपना सर्वस्व त्याग देगा। बाल्यावस्था से ही आप धुन के धनी अपूर्व साहस से संयुक्त और कुछ कर दिखाने की भावना से ओतप्रोत थे। युवावस्था में भी उनकी स्वतंत्र चिन्तनधारा निष्काम साधना की ओर अग्रसर थी. दिनरात यही चिन्तन करते रहते थे कि इस अमूल्य मानव जीवन को किस प्रकार आत्मविकास के मार्ग पर अग्रसर किया जाय। माता-पिता का दिया नाम "प्रेम" उनके अन्तरग और रोम रोम में बसा हुआ था। युवा प्रेमचन्द ने 15 वर्ष की आयु में विवाह भी किया। पत्नी शीलवती एव धर्म परायणा थी। दो संतानें भी हुई पुत्र आदीश जैन और पुत्री अंजना जैन अनमने मन से व्यापार भी किया लेकिन पूर्व जनित सस्कार इस मध्य में भी उनके साथ रहे। श्रावक के पट्कर्मो का नियमित पालन करते हुए, साधुओ की वैय्यावृत्ति में आपको विशेष आनन्द आता था । पुत्री जब गर्भ में थी तभी आजीवन ब्रह्मचर्य लेकर गृहस्थ जीवन को सांकेतिक तिलांजलि दे दी तथा 17 वर्ष की अवस्था में ही आपने 108 आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज से संयम ले लिया। कपड़ा का व्यवसाय भी किया पर वणिक् वृत्ति से नही, मात्र गृहस्थ धर्म का पालन करने हेतु पूर्ण ईमानदारी से । गृहस्थ अवस्था में वे सदैव यही ध्यान रखते थे कि शाश्वत सुख के लिए राग से विराग की ओर बढ़ना है, अगारी से अनगारी बनना है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए वे कर्तव्यनिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता भी रहे। करनावल वाले विभिन्न क्षेत्रों में प्रदत्त आपके अवदान का आज भी स्मरण कर रोमांचित हो जाते हैं। एक बार सरकारी योजना बनी कि करनावल में स्थित तालाबों में मछली पालन होगा. यह प्राणीमात्र के प्रति करुणा भाव रखने वाले संवदेनशील प्रेमचन्द्र जी को कैसे सहन होता कि उनकी मातृभूमि पर यह नृशंस कार्य हो, उन्होंने पुरजोर विरोध किया और प्रशासन की इस योजना को निरस्त कराया। देखने में भले ही कृशकाय थे पर रहे अतुल बलशाली एक बार गाँव में डाकू आ गए प्रेमचन्द ने अपूर्व सूझबूझ और शक्ति का परिचय दिया और डाकुओं को गाँव से बाहर खदेड़ा। न जाने X
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy