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________________ कि दुर्घटना हुई बात को बार-बार याद करके विलाप करने से कोई लाभ नहीं होता किन्तु कर्मो का अशुभ आस्रव होता है। यह विलाप आस्रव का कारण है। 2. किसी नगर में एक बहुत गरीब परिवार रहता था। उनके यहां कभी समय पर भोजन नहीं बनता था। बहुत ही कठिनता से ये अपना जीवन-यापन कर रहे थे। एक दिन परिवार के सदस्य दो लॉटरी के टिकट खरीद लेते हैं। जिनका प्रथम पुरस्कार एक लाख रुपये का था। समय आने पर एक टिकट का प्रथम पुरस्कार का नम्बर निकल जाता है। पूरे घर में यह देख खशी की लहर छा जाती है। घर में बहुत अच्छा खाना बनता है। आदि भाँति-भाँति के व्यंजन बनते हैं। शाम को घर का मुखिया आता है तो घर में खुशी का वातावरण देखकर पूछता है कि आज किस कारण घर में ये व्यंजन आदि बन रहे हैं। पत्नी कहती है कि आज हमारी गरीबी, के दिनों का अन्त हो गया। हमारी एक लाख रुपये की लॉटरी खुल गयी है। क्या तुम्हें पता नहीं? पति कहता है कि पता तो है किन्तु मुझे आज अत्यन्त दु:ख है कि मेरी दूसरी लॉटरी नहीं निकली। दूसरा टिकट व्यर्थ चला गया। अत: एक लाख रुपये का नुकसान हो गया। इस दृष्टान्त का तात्पर्य यह है कि मनुष्य वर्तमान में भी सुख-सुविधा होने पर भी चिंता में बैठा हुआ आस्रव करता है। 3. किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे। वे बहुत धनवान थे। उनके यहाँ अनेक कारखाने मिलें चलती थीं। इनके मुनीम भी बहुत कार्य करते थे। अचानक एक दिन सेठ जी मुनीम से कहते हैं कि-"मुनीम जी सारी सम्पदा का हिसाब लगाकर यह बताओ कि यह सम्पदा कितनी पीढ़ी तक चलेगी? मुनीम हिसाब लगाकर बताता है कि-"सेठ जी आपके पास इतनी सम्पदा है कि यह 21 पीढ़ी तक समाप्त न होगी। सेठ जी यह सुनकर कहते हैं कि फिर 22वीं पीढ़ी का क्या होगा? इसी बात की चिन्ता में सेठ जी रात-दिन रहने लगते हैं। एक दिन पत्नी पूछती है कि आप इतनी चिन्ता में क्यों रहते हैं? सेठ जी कहते हैं कि मुझे, चिन्ता इस बात की है कि मुनीम ने धन केवल 21 पीढ़ी का बताया है, फिर 22वीं पीढ़ी का क्या होगा? तब सेठानी कहती है तुम सब धन-दौलत व्यापार मुझे सौंप दो। मैं बाइसवीं पीढ़ी का भी धन कमा लूँगी। सेठ जी सब चार्ज पत्नी को सौंप देते हैं। अब सेठानी भण्डारे लगाने लगती है, खुलेहाथ से दान देना शुरू कर देती है। यह देख सेठ जी को और चिंता सताने लगती है। सोचते हैं यह तो धन को बढ़ाने की बजाये घटाने लगी। यह सोच सेठानी से कहते हैं कि यह तम क्या कर रही हो? तम तो कहती थी कि मैं तम्हारे धन को बढ़ाऊँगी, उल्टा धन को घटा रही हो। सेठानी यह सुन उत्तर देती है कि-मैं बाइसवीं पीढी का धन ही कमा रही हूँ, यही मैंने वायदा किया था आपसे। सेठ जी फिर कहते हैं कि यह धन को कमा रही हो या लुटा रही हो? पत्नी चतुर थी। यह सुन वह सेठ जी से कहती है कि अच्छा ऐसा करो आज आप जंगल में बैठे हुए एक भिखारी को यह चावल दे आओ। सेठ जी उस भिखारी को चावल देने पहुँच जाते हैं। अब वह भिखारी सेठ जी से 94
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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