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स्यादुवाद
सत्य का प्रतिपादन असंभव है, और अनुभवातीत अवस्था में भाषा अधूरी पढ़ जाती है ..।"" वस्तु जगत् की व्याख्या के लिए किये गये कष्टसाध्य प्रयासों के अलावा यह सिद्धांत जैन दार्शनिकों के दार्शनिक समस्याओं के प्रति अपनाये गये शालीन दृष्टिकोण का भी परिचायक है।
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3. पूर्वी०, खण्ड प्रथम, पु० 108