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________________ क्या जैन धर्म बौद्ध धर्म की एक शाखा है ? परन्तु जब जैनधर्म को बौद्धधर्म की एक शाखा नहीं समझा जाता। इसका. दो जर्मन विद्वानों के अनुसंधान कार्य को है । हर्मन याकोजी ने कल्पसूत्र के अपने संस्करण की भूमिका में और अपने लेख महावीर एन्ड हिज ब्रिटिसेसर्स ( महावीर और उनके पहले के तीर्थंकर) में बतलाया है कि जैन धर्म का जन्म स्वतंत्र रूप से हुआ है। जॉर्ज बूलर ने अपने लेख इडियन सेक्ट ऑफ द न ( भारत का जैन सम्प्रदाय) में जैन धर्म के जन्म तथा विकास की व्यापक एवं वैज्ञानिक जानकारी दी हैं । 3 1 चूंकि जैन तथा बौद्ध धर्मग्रन्थों में चौबीसवें तीयंकर महावीर (जिन्हें गलती से जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है) के लिए कुछ अन्य नाम मिलते हैं, इसीलिए संभवत: शोधकर्ता इस तथ्य को महसूस नहीं कर पाये कि जैन धर्म, बौद्ध धर्म की एक शाखा तो है ही नहीं; बल्कि इसका मूल अधिक प्राचीन है । महावीर ज्ञात क्षत्रिय कुल में पैदा हुए थे, इसलिए मातृपुत्र कहलाते थे । प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में जैनों के लिए सामान्यत: निर्भय (बन्धनमुक्त) शब्द मिलता है और पालि बौद्ध ग्रन्थों में निगच्छ शब्द इस दूसरे शब्द पर थोड़ा विचार करने से उन तथ्यों पर प्रकाश पड़ता है जो कि जैन धर्म के कई विद्यार्थियों को सुस्पष्ट नहीं हैं। ज्ञात के लिए पालि का समरूप शब्द है नात और इसीलिए बौद्ध धर्म ग्रन्थों में महावीर को नातपुत कहा गया है। बौद्ध पिटकों में मिगण्ठों को बुद्ध तथा उनके अनुयायियों के विरोधी कहा गया है। जाहिर है कि उनके मतों का खण्डन करने के लिए ही उन्हें विरोधी कहा गया है। बौद्ध ग्रन्थों में जो निगष्ठनाथ, निगण्ड नातपुर तथा नासयुक्त शब्द पाये जाते हैं वे महावीर कं द्योतक हैं। इस संदर्भ में बूलर लिखते हैं: "जैन धर्म के संस्थापक' के वास्तविक नाम की खोज प्रोफेसर याकोबी और मैंने की है। शातृपुत्र शब्द जैन तथा महायानी बौद्ध ग्रन्थों . में मिलता है। पालि में नातपुल शब्द है और जैन प्राकृत में नयपुस । जान पड़ता है कि ज्ञात या शाति नाम का कोई राजपूत कुल था जिससे निम्ब उत्पन्न हुए हैं।"" चूंकि बौद्ध ग्रंथों में केवल महावीर के नाम का उल्लेख न होकर साथ में उस दार्शनिक मत का भी उल्लेख है जिसके वे अनुयायी थे, इसलिए यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर के पहले भी जैन धर्म का अस्तित्व रहा है। इसमें संदेह नहीं कि महावीर और बुद्ध समकालीन मे और, चूंकि बौद्ध ग्रन्थ जैन मत का उल्लेख करते हैं, इसलिए हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि जैनों का अपना एक 5. 'व कल्प-सूल बफ भद्रबाह' (लाइपजिय, 1879), पु० 1-15 6. देखिये 'द इंडियन एण्टीक्वेरी', IX, पृ० 158 7. लेब 1877 ई० में पड़ा गया था । 8. यहां महाबीर को जैन सम्प्रदाय का संस्थापक कहा गया है। निश्चय ही विद्वान लेखक से मह भूल किसी क्षणिक मतामधानी के कारण हुई होगी। 9. xq, VII, q. 143
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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