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क्या जैन धर्म बौद्ध धर्म की एक शाखा है ?
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एशिया का धर्म
सर्वविदित है कि भारत के तीन प्रमुख धर्मों--- हिन्दू, बौद्ध तथा जैन में से पहले दो धर्मों के प्रति ही भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों का विशेष आकर्षण रहा है। जैन धर्म के अनुशीलन की बड़ी उपेक्षा हुई है, भारतीय विद्वान भी उदासीन रहे । जैन धर्म भारत में आज भी जीवित है, फिर भी, बड़े आश्चर्य की बात है कि, अपनी जन्मभूमि में ही यह धर्म काफी उपेक्षित है। दूसरी ओर, बौद्ध धर्म का भारतभूमि से लगभग लोप हो गया है, फिर भी यहां भारत में इस धर्म का अपने निकट के जैन धर्म की अपेक्षा अधिक गहन अध्ययन हुआ है और लोगों को इसके बारे में जानकारी भी अधिक है। इस दशा का एक कारण यह भी हो सकता है कि एक समय बौद्ध धर्म इतना अधिक प्रभावशाली था कि इसे समझा जाता था । बौद्ध धर्म को यह जो अधिक महत्त्व मिला है, इसके सुरेन्द्रनाथ दासगुप्त दो कारण बतलाते हैं: (1) इन दो धर्मों में कुछ बातें समान हैं, जो ( वस्तुत: निर्णायक तो नहीं हैं, परन्तु) प्रभावक हैं, और (2) विदेशी तथा भारतीय विद्वानों को जैन धर्म के मूल ग्रन्थ प्राप्त न हो सके। वे लिखते हैं: "जैन तथा बौद्ध धर्म, ब्राह्मण धर्म के परिवेश के बाहर, मूलत: श्रमण परम्परा के धर्म थे। दोनों की दार्शनिक मान्यताओं में मौलिक भेद होने पर भी इनमें कुछ बाह्य समानताएं हैं, इसलिए जिन यूरोपीय विद्वानों ने अपर्याप्त सामग्री से जैन धर्म का परिचय प्राप्त किया, उन्हें लगा कि यह धर्म बौद्ध धर्म की ही एक शाखा है। जैन साहित्य की जानकारी न रखनेवाले भारतीय भी अक्सर इसी गलतफहमी के शिकार होते दिखाई देते हैं।"" यहां दासगुप्त के विचार में इन दो धर्मो के बीच जो समानताएं हैं, वे संभवतः ये हैं: (1) दोनों धर्मो का उदय भारत के एक ही प्रदेश में हुआ है, (2) दोनों ने देश में प्रचलित तत्कालीन कट्टरपंथी विचारों का विरोध किया, ( 3 ) दोनों हिन्दू समाज की वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे, (4) दोनों ने ही अपने-अपने मतानुसार ईश्वर को नकारा, (5) दोनों ने ही समान 1. ए हिस्ट्री ऑफ इंडियन फिलॉसफी' (कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1963), खण्ड 1, T⚫ 169