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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
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उत्पत्ति, स्थिति और गति का श्रादि कारण है। वं कर्म के प्रभाव से ही विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त करते हैं...”
प्राणियों के उत्पत्ति-स्थान ८४ लाख हैं और उनके कुल एक करोड़ साढ़े सत्तानवें लाख (१,६७,५०,००० ) हैं । एक उत्पत्ति-स्थान में अनेक कुल होते हैं। जैसे गोबर एक ही योनि है और उसमें कृमि-कुल, कीट-कुल, वृश्चिक- कुल आदि अनेक कुल हैं।
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स्थान
१- पृथ्वीकाय
२
- पकाय ३ -- तेजस्काय
४-- वायुकाय
५ - वनस्पतिकाय
६- द्वीन्द्रिय
- श्रीन्द्रिय
८- चतुरिन्द्रय ६- तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय
१०
- मनुष्य
११-नार की १२ देव
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७ लाख
୭
७
७
४
उत्पत्ति
२
४
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२४ लाख
२
35
99
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لار
33
१४ लाख
४
35
१२ लाख
७
२८
७
८
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33
در
२५
२६
33
39
39
99
कुल
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जलचर-- १२॥ लाख खेचर-१२ 39
स्थलचर १०
उर परिसर्प - १०,
भुज-परिसर्प
१२ लाख
ار
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39
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