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________________ __... जैन दर्शन के मौलिक तत्व अप्रत्यक्ष ब्रह्म में ही सत्भाव या प्रत्यक्ष माया का प्रपंच प्रतिष्ठित है। इसी सत् अर्थात् प्रत्यक्ष माया के प्रपंच में सारी सष्टि (भम) के . उपादान-भूत पृथिव्यादि पंच महाभूत निहित है, इसी से उत्पन्न होते हैं। वे ही पाँचों महाभूत समस्त कार्यों में विद्यमान रहते हैं। समस्त सृष्टि उन्हीं महाभूतों में-पीपल के बीन में पीपल के पक्ष की तरह वर्तमान रहती है। (ख) “तद द्वाभ्यामेव प्रत्यवैद रूपेण चैव नाम्ना च"-रात१९१३ ब्रह्म तीनों लोकों से प्रतीत है। उसने सोचा किस प्रकार मैं इन लोगों में पे₹। तब वह नाम और रूप से इन लोगों में पैठा। २३-स्वभाववाद, आकस्मिकवाद, सहच्छावाद, आहेतुवाद, कम-विकासवाद . प्लुतसंचारवाद, आदि आदि। २४-"नासदासीन्नोसदासीतदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्।" "को अदा वेद क इह प्रवोचत् कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः ।। अर्वाग् देव अस्य विसर्जनेनाथा को वेद मत प्राबभूव ।" -६ "इयं विसष्टियंत आबभूव यदि वा दधे यदि वान। यो अस्याध्यक्षः परमे व्यामन्त्सो भंग वेद यदि वा न वेद-७ (ऋग० १११२६ नासदीय सूक्त) उस समय प्रलय दशा में असत् भी नहीं था। सत् भी नहीं था। पृथ्वी भी नहीं थी। आकाश भी नहीं था। आकाश में विद्यमान सातों भुवन भी नहीं थे। ____ प्रत तस्व को कौन जानता है ! कौन उसका वर्णन करता है। यह दष्टि किस उपादान कारण से हुई ! किस निमित कारण से ये विविध सष्टियाँ हुई ! देवता लोग हन सुष्टियों के अनन्तर उत्पन्न हुए हैं। कहाँ से सष्टि हुई यह कौन जानता है! पे नाना राष्टियाँ कहाँ से हुई, किसने खष्टियाँ की और किसने नहीं की ये सब ही जाने, जो इनके स्वामी परमधाम में रहते हैं। हो सकता है भी यह सब न जानते हों। २५-विशेष जानकारी के लिए देखिए:- भाचा नि०४२, स्या. १
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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