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________________ जैन दर्शन के मौलिक तत्व ४.-सोडियम (Sodium) धातु के टुकड़े पानी में तैरकृत्रा कीड़ों की तरह तीव्रता से इधर-उधर दौड़ते हैं और शीघ्र ही रासायनिक क्रिया के कारण समाप्त होकर लुत हो जाते हैं। -हि० भा० खण्ड १ पृ. १३८ ४१-यथा श्रीहि ; यवो वा-यह उप० ५५६१ ४२-प्रदेश मात्रम्-छान्दो० उप ५१५१ ४३-एष प्रशात्मा इदं शरीरमनुप्रविष्टः-कौषी० ३५४१२० ४४-सर्वगतम्-मुण्डकोप० १११६ ४५-एष म आत्मान्तर हृदये ज्यायान् पृथिव्या ज्यायानन्तरिक्षा ज्यायान् दिवो ज्यायानभ्यो लोकेभ्यः। -छांदो० उप० ३३१४३ ४६-जीवत्थि काए-लोए, लोय मेत्ते लोयप्पमाणे। भग० २०१० ४०-जैन० दी०सार ४७-भग० ६।६।१७ ४८-चत्तारि पएसम्गेण तुल्ला......... ४६-लोकस्तावदयं सूक्ष्मजीवै निरन्तरं भृतस्तिष्ठति । वादरैश्चाधारवशेन कचिदेव । -पर०प्र० ० २।१०७ ५०- अद्दाऽमलगपमाणे, पुढवीकाए हवंति जे जीवा। ते पारेवय मित्ता जंबूदीवे न माईति ॥ ५१-एगम्मि दगबिन्दुम्मिमे जे जिणवरेहि पण्णत्ता ते जा सरिसबमित्ता जम्बू दीवे न माईति । ५२- वरट्टि तन्दुल मित्ता तेज जीवा जिणेहिं पण्णता। मत्थ पलिक्ख पमाणा, जंबूदीवे न माइति ।। -सेन उल्लास ३ प्रश्न-२६६ ५३- जे लिंबपत्तफरिसा बाऊ जीवा जिणेहिं पण्णता। ते जा खसखसमित्ता, जंबूदीवे न माइति ॥ सेन उल्लास ३-प्रश्न-२६९ ५४--होमर-युनान का प्रसिद्ध कवि! Take your dead hydrogen atoms your
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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