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________________ दान के मालिक तय " . एक ही शब्द सदा एक वस्तु की अभिव्यक्ति नहीं करता। क्रिया-कालीन वस्तु का वाचक शब्द क्रिया-काल-शून्य वस्तु को अभिव्यक्त नहीं कर सकता। दुर्नयः निरपेक्ष-इष्टियाँ १. व्यक्ति और समुदाय दोनों सर्वथा भिन्न हो ?-यह वस्तु स्थिति का तिरस्कार है। यह ऐकान्तिक पार्थक्यवादी नीति (नगम-नयाभास) है। २. समुदाय ही सत्य है-यह व्यक्ति का तिरस्कार है। यह ऐकान्तिक समुदायवादी नीति (संग्रह नयाभास ) है। ३. व्यक्ति ही सत्य है-यह समुदाय का तिरस्कार है। यह ऐकान्तिकव्यक्तिवादी नीति (ग्यवहार-नयामास ) है। ४. वर्तमान ही सत्य है-यह अतीव और भविष्य, अपरिवर्तन या एकता का तिरस्कार है । यह ऐकान्तिक परिवर्तनवादी नीति (पर्यायार्थिक-नयाभास) है। ५. लिङ्ग-भेद ही सत्य है-यह भी एकता का तिरस्कार है। ६. उत्पत्ति-भेद ही सत्य है-यह भी एकता का तिरस्कार है। ७. क्रियाकाल ही सत्य है-यह भी एकता का तिरस्कार है निरपेक्ष दृष्टि का त्याग ही समाज को शान्ति की ओर अग्रसर कर सकता है। स्यावादाय नमस्तस्मै, यं विना सकलाः क्रियाः। लोकद्वितयभाविन्यो नैव साङ्गत्यमासते ॥ जिसकी शरण लिए बिना लौकिक और लोकोत्तर दोनों प्रकार की क्रियाए' समञ्जस (संगत ) नहीं होतीं, उस स्यावाद को नमस्कार है। जेन विणा लोगस्स वि, ववहारो सव्वहा गणिघडइ । तस्स मुवणेकगुरुणो, मो अणेगंतवायस्स ॥ जिसके बिना लोक व्यवहार भी संगत नहीं होता, उस जगद्गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार है। उत्पन्नं दषिमावेन, नष्टं दुग्धतया पयः। गोरसत्वात् स्थिर मानन् , स्वाहादिर्जनोऽपि ।
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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