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जैन दर्शन के मौलिक तख ३६९ . वस्तुएं बदलती , क्षेत्र बदलता है, काल बदलता है, विचार बदलते हैं, इनके साथ स्थितियां बदलती है। बदलते सत्य को जो पकड़ लेता है, वह सामञ्जस्य की तुला में चढ़ दूसरों का साथी बन जाता है।
समय-समय पर हुई राज्यक्रान्तियों ने राज्यसत्ताओं को बदल डाला। राज्य की सीमाएं बदलती रही हैं। शासन काल बदलता रहा है। शासन की पद्धतियां भी बदलती रही हैं। इन परिवर्तनों का एक मूल्यांकन करनेवाले ही अशान्ति को टाल सकते हैं। गाँधी, नेहरू और पटेल अखन्ड भारत के सिद्धान्त पर अड़े ही रहते, जिन्ना की माँग को स्वीकार नहीं करते तो सम्भवतः अशान्ति उग्र रूप लेती। किन्तु उनकी सापेक्ष-नीति ने वस्तु, क्षेत्र, काल और परिस्थिति के मूल्यांकन द्वारा अशान्ति को निवीर्य बना दिया। ऐकान्तिक आग्रह ___ भारत में राज्य पुनर्रचना को लेकर अभी-अभी जो असन्तुलन आया, वह केवल अाग्रही मनोवृत्ति का निदर्शन है। भारत की अखण्डता में निष्ठा खनेवाले काश्मीर से कन्याकुमारी तक एक भएडे की सत्ता स्वीकार करनेवाले प्रान्त-रचना जैसे छोटे प्रश्न पर उलझ गए । हिंसा को उभारने लग गए।
भारत संवर्ग व संघात्मक राज्य है। संविधान की तीसरी धारा के द्वारा पार्लियामेंट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह विधि द्वारा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी, राज्य का क्षेत्र घटा-बढ़ा सकेगी, नया राज्य बना सकेगी।
इस व्यवस्था के विरुद्ध जो आन्दोलन चला, वह परिवर्तन की मर्यादा को न समझने का परिणाम है। भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्निर्माण में जो तथ्य है, तथ्य केवल वही नहीं है।
भाषा की विविधता में जो सांस्कृतिक एकात्मकता है, वह भी तो एक तथ्य है।
मेवात्मक प्रवृत्तियों के ऐकान्तिक आग्रह से अखण्डता का नाश होता है।
अमेदात्मक वृत्ति के एकान्त माह से खण्ड की वास्तविकता और उपयोगिता का चोप होता है।