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इकत्तीस
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३५५-३५२ जैन-दर्शन और वर्तमान युग साम्य-दर्शन निःशस्त्रीकरण (शस्त्र-परिक्षा) शस्त्रीकरण के हेतु प्रतिष्ठा का व्यामोह शस्त्रोकरण का परिणाम नेतृत्त्व का महत्त्व पाण्डित्य शस्त्र-प्रयोक्ता अविवेक और विवेक निःशस्त्रीकरण का अधिकारी शस्त्र प्रयोग से दूर अशस्त्र की उपासना मित्र और शत्रु चैतन्य का सूक्ष्म जगत् ज्ञान और वेदना (अनुभूति) अहिंसा का सिद्धान्त हिंसा चोरी है निःशस्त्रीकरण की आधार शिला आत्मा का सम्मान वस्तु सत्य व्यवहार सत्य व्यक्ति और समुदाय अन्तर्राष्ट्रीय-निरपेक्षता ऐकान्तिक आग्रह समन्वय की दिशा में प्रगति . पंचशील