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________________ "जन दर्शन के मौलिक तत्व [ ३४५ प्रिय विषयों में अतृप्त व्यक्ति के माया-मृषा और लोभ बढ़ते हैं, वह . दुःख-मुक्ति नहीं पा सकता ० 1 परिग्रह में श्रासक्त व्यक्ति के माया मृषा और लोभ बढ़ते हैं, वह दुःखमुक्ति नहीं पा सकता' २१ 1 दुःख आरम्भ से पैदा होता है २२ । 1 दुःख हिंसा से पैदा होता है - " दुःख कामना से पैदा होता है २४ । s जहाँ आरम्भ है, हिंसा, है, कामना है, वहाँ राग-द्वेष है। जहाँ रागद्वेष है वहाँ क्रोध, मान, माया, लोभ, घृणा, हर्ष, विषाद, हास्य, भय, शोक और वासनाएं है २५ । जहाँ ये सब हैं, वहाँ कर्म ( बन्धन ) है । जहाँ कर्म है, वहाँ संसार है; जहाँ संसार है, वहाँ जन्म है। जहाँ जन्म है, वहाँ जरा है, रोग है, मौत है । जहाँ ये हैं, वहाँ दुःख है" । भव तृष्णा विषैली बेल है। यह भयंकर है और इसके फल बड़े डरावने होते हैं२७ । 19 महात्मा बुद्ध ने कहा- मनुष्य अपनी आंख से रूप देखता है। प्रियकर लगे तो उसमें आसक्त हो जाता है, अप्रियकर हो तो उससे दूर भागता है । कान से शब्द सुनता है, प्रियकर लगे तो उसमें आसक्त हो जाता है, अप्रियकर लगे तो उससे दूर भागता है । घ्राण से गन्ध सूंघता है, प्रियकर लगे तो उसमें श्रासक्त हो जाता है, प्रियकर लगे तो उससे दूर भागता है । जिहा से रस चखता है, प्रियकर लगे तो उसमें श्रासक्त हो जाता है, अप्रियकर लगे तो उससे दूर भागता है । काय से स्पर्श करता है, प्रियकर लगे तो उसमें श्रासक्त हो जाता है, श्रप्रियकर लगे तो उससे दूर भागता है । मन से मन के विषय (धर्म) का चिन्तन करता है, प्रियकर लगे तो उसमें श्रासक्त हो जाता है अप्रियकर लगे तो उससे दूर भागता है। 1 इस प्रकार आसक्त होनेवाला तथा दूर भागनेवाला जिस दुःख-सुख वा दुख-सुख, किसी भी प्रकार की वेदना अनुभूति का अनुभव करता है, वह उस बेदना में आनन्द लेता है, प्रशंसा करता है, उसे अपनाता है । वेदना को 1 'जो अपना बनाना है, वही उसमें राग उत्पन्न होना है। वेदना में जो राग है,
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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