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जागरण
जो संयम है, वही असत्य है और जो असत्य है, वही असंयम है । जो संयम है, वही सत्य है और जो सत्य है, वही संयम है । जो संयम की उपासना करता है, वह स्वयं शिव और सुन्दर बन जाता है --- विजातीय तत्त्व को खपा स्वस्थ या श्रात्मस्थ बन जाता है " ।
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चार प्रकार के पुरुष होते हैं।
( १ ) कोई व्यक्ति द्रव्य-नींद से जागता है, भाव- नींद से सोता है, वह सयंमी है ।
( २ ) कोई व्यक्ति द्रव्य - नींद से भी सोता है और भाव- नींद से भी सोता है, वह प्रमादी और संयमी दोनों है ।
( ३ ) कोई व्यक्ति द्रव्य-नींद से सोता है किन्तु भाव-नींद से दूर है, वह संयमी है ।
( ४ ) कोई व्यक्ति द्रव्य और भाव नींद- दोनों से दूर है, वह प्रति जागरूक संयमी है।
देहिक नींद वास्तव में नींद नहीं है, यह द्रव्य-नींद है। वास्तविक नींद श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र की शून्यता है ।
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जो मुनि ( संयमी) हैं, वे सदा सोये हुए हैं। जो मुनि ( संयमी) हैं, वे सदा जागते है । यह सतत शयन और सतत जागरण की भाषा अलौकिक है संयम नींद है और संयम जागरण । श्रसंयमी अपनी हिंसा करता है, दूसरों का वध करता है, इसलिए वह सोया हुआ है । संयमी किसी की भी हिंसा नहीं करता, इसलिए वह श्रप्रमत्त है - सदा जागरूक है। आत्मा से परमात्मा
जो व्यकि दिन में, परिपद में, जागृत-दशा में या दूसरों के संकोचवश पाप से बचते हैं, वे वह्निर्हष्टि है-अन्-अध्यात्मिक हैं। उनमें अभी अध्यात्मचेतना का जागरण नहीं हुआ है।
जो व्यक्ति दिन और रात, विजन और परिषद्, सुप्ति और जागरण में अपने