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________________ ३०२] जैन दर्शन के मौलिक तत्व छद्मस्थ की मनोदशा का विश्लेषण करते हुए भगवान् ने कहा"छद्मस्थ सात कारणों से पहचाना जाता है-(१) वह प्राणातिपात करता है (२) मृपावादी होता है (३) अदत लेता है (४) शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का आस्वाद लेता है (५) पूजा, सत्कार की वृद्धि चाहता है (६) पापकारी कार्य को पापकारी कहता हुश्रा भी उसका आचरण करता है (७) जैसा कहता है, वैसा नहीं करता । ____ यह प्रमाव युक्त व्यक्ति की मनः स्थिति का प्ररूपण है। मोह प्रबल होता हैं, तब कथनी करनी की एकता नहीं आती। उसके बिना ज्ञान और क्रिया का सामञ्जस्य नहीं होता। इनके असामञ्जस्य में पूजा-प्रतिष्ठा की भूख होती है । जहाँ यह होती है, वहाँ विषय का आकर्षण होता है। विषय की पूर्ति के लिए चोरी होती है। चोरी झूठ लाती है और झूठ से प्राणातिपात आता है । साधना की कमी या मोह की प्रबलता में ये विकार एक ही श्रृंखला से जुड़े रहते हैं। अप्रमत्त या वीतराग में ये मातों विकार नहीं होते। देश विरति ___ भगवान् ने कहा-गौतम ! सत्य (धर्म ) की श्रुति दुर्लभ है । बहुत सारे लोग मिथ्यावादियों के संग में ही लीन रहते हैं। उन्हें सत्य-श्रुति का अवसर नहीं मिलता। श्रद्धा सत्य-श्रुति से भी दुर्लभ है। बहुत सारे व्यक्ति सत्यांश सुनते हुए भी ( जानते हुए भी) उस पर श्रद्धा नहीं करते। वे मिथ्यावाद में ही रचे-पचे रहते हैं। काय-स्पर्श ( सत्य का आचरण ) श्रद्धा से भी दुर्लभ है। सत्य की जानकारी और श्रद्धा के उपरान्त भी काम-भोग की मूळ छटे बिना सत्य का आचरण नहीं होता। तीव्रतम-कषाय (अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोम ) के विलय से सम्यक् दर्शन (सत्य श्रद्धा) की योग्यता आजाती है। किन्तु तीव्रतर कषाय ( अप्रत्याख्यान क्रोधादि चतुष्क ) के रहते हुए चारित्रिक योग्यता नहीं पाती। इसीलिए श्रद्धा से चारित्र का स्थान आगे है। चरित्रवान् श्रद्धा सम्पन्न अवश्य होता है किन्तु श्रद्धावान् चरित्रसम्पन्न होता भी है और नहीं भी। यही इस भूमिका भेद का आधार है। पांचवी भूमिका चारित्र की है। इसमें चरित्रांश का उदय होता है। कर्मनिरोध या संवर का यही प्रवेश-द्वार है।
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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