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________________ लोक-विजय गौतम ने पूछा-भगवन् ! विजय क्या है? भगवान् ने कहा-गौतम ! प्रात्म-स्वभाव की अनुभूति ही शाश्वत सुख है । शाश्वत-सुख की अनुभूति ही विजय है। दुःख आत्मा का स्वभाव नहीं है। प्रात्मा में दुख की उपलब्धि जो है, वही पराजय है। भगवान ने कहा-गौतम ! · जो क्रोध-दी है, वह मान-वी है। जो मान-वशीं है, वह माया-वी है। जो माया दी है, वह लोम-दशी है। । जो लोम-दशी है, वह प्रेम-दशी है। जो प्रेम-दशी है, वह द्वेष-दशी है। जो देष-वशीं है, वह मोह-दशी है। जो मोह-दशी है, वह गर्भ-दी है। जो गर्भ-दशी है, वह जन्म-दीं है। जो जन्म-दर्शी है, वह मार-दशी है। जो मार-दशी है, वह नरक दी है। जो नरक-वी है, वह निर्यक-दी है। जो तिर्यक-वशीं है, नह दुख-दशी है। दुख की उपलब्धि मनुष्य की बोर पराजय है। नरक और निर्यज्ञ (प. पी)की योनि खानुभूति का मुख्य स्थान है-पराजिब बाक्ति के लिए बन्दी-है। गर्म, जन्म और मौत से जाने वाले हैं। माँ पाने का निर्देशक मोह है। कोष, मान, माषा, लोम, श्रम और देवकी परवर माति । मोह के ही विविध रूम।
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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