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________________ २०७] जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व ___ जीव के प्रयोग से जो बन्ध होता है उसे प्रायोगिक कहा जाता है। बैखसिक बन्ध सादि और अनादि-दोनों प्रकार का होता है। धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों का बन्ध अनादि है। सादि बन्ध केवल पुद्गलों का होता है। द्यणुक आदि स्कन्ध बनते हैं वह सादि वन्ध है उसकी प्रक्रिया यह है• स्कन्ध केवल परमाणुओं के संयोग से नहीं बनता। चिकने और रूखे परमाणुओं का परस्पर एकत्व होता है तब स्कन्ध बनता है अर्थात् स्कन्ध की उत्पत्ति का हेतु परमाणुओं का स्निग्धत्व और रुक्षत्व है। विशेष नियम यह है (१) जघन्य अंश वाले चिकने और रूखे परमाणु मिलकर स्कन्ध नहीं बना सकते। (२) समान अंश वाले परमाणु, यदि वे सदृश हों-केवल चिकने हों या केवल रूखे हों, मिलकर स्कन्ध नहीं बना सकते। (३) स्निग्धता या रूक्षता दो अंश या तीन अंश आदि अधिक हों तो सदृश परमाणु मिलकर स्कन्ध का निर्माण कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में श्वेताम्बर और दिगम्बर-परम्परा में कुछ मतभेद है। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार (१) जघन्य अंश वाले परमाणु का अजघन्य-अंश वाले परमाणु के साथ बन्ध होता है। (२) सदृश परमाणुओं में तीन-चार आदि अंश अधिक होने पर भी स्कन्ध होना माना जाता है। (३) दो अंश आदि अधिक हों तो बन्ध होता है-यह सदृश परमाणुओं के लिए ही है। दिगम्बर-परम्परा के अनुसार (१) एक जघन्य अंश वाले परमाणु का दूसरे अमघन्य अंश बाले परमाणु के साथ बन्ध नहीं होता । (२) सदृश परमाणुओं में केवल दो अंश अधिक होने पर ही बन्ध मान जाता है.५
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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