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________________ [६३ ] इससे वैदिक ऋषियों की उदार और सर्वग्राही भावना के प्रति सहज ही . आदर भाव उत्पन्न होता है कि उन्होंने विरोधी धाराओं को भी किस प्रकार अपनी धारा में समन्वित कर लिया। शब्द साम्य उपनिषदों में श्रमण धारा के दर्शन का दूसरा हेतु शब्द-साम्य है। उनमें ऐसे अनेक शब्द हैं, जिनका उपयोग श्रमण-साहित्य में अधिक हुआ है। छान्दोग्य में 'कषाय' शब्द राग-द्वेष के अर्थ में व्यवहृत है।' जैन आगम साहित्य में यह इसी अर्थ में हजारों बार प्रयुक्त है जब कि वैदिक साहित्य में इस अर्थ में उसका प्रयोग सहज लभ्य नहीं है। मण्डूक उपनिषद् का तायी' शब्द भी वैसा ही है। वह वैदिक साहित्य में प्रायः व्यवहृत नहीं है। जैन और बौद्ध साहित्य में उसका प्रचुर व्यवहार हुआ है। विषय साम्य विषय वर्णन की दृष्टि से भी उपनिषदों के कुछ सिद्धान्तों का श्रमणों की सिद्धान्त धारा से बहुत गहरा सम्बन्ध है। मण्डक, छान्दोग्य आदि उपनिषदों में ऐसे अनेक स्थल हैं जहाँ श्रमण विचार धारा का स्पष्ट प्रतिबिम्ब है। जर्मन विद्वान् हर्टल ने यह प्रमाणित किया है कि मण्डकोपनिषद में लगभग जैन सिद्धान्त जैसा वर्णन मिलता है और जेन पारिभाषिक शब्द भी वहाँ व्यवहृत हुए हैं। उस प्राचीन काल में वेदों और उपनिषदों के अतिरिक्त ब्रह्म विद्या विषयक साहित्य 'श्लोक' नाम से प्रसिद्ध था। द्वादशाङ्गी के विवरण में सर्वत्र यह मिलता है कि प्रत्येक अङ्ग में संख्येक श्लोक थे।५ वैदिक, जैन और वौद्ध १-छान्दोग्य ७२६२ मृदित कषायाय-शंकराचार्य ने इसके भाग्य में लिखा है-मृदित कषायाय वाादिरिव कषायो रागद्वेषादिदोषः सत्वस्य रञ्जना रूपत्वात् ....। २-मण्डकोपनिषद् ६६। ३-इण्डो-इरेनियन मूल अन्य और संशोधन भाग ३ ४-इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली भाग ३ पृ० ३०७-३१५ (उमेश चन्द्र भट्टाचार्य का लेख) ५-समवायाङ्ग सूत्र १३६.१४६, नंदी सूत्र ४५-५५
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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