________________
[ १४६ ] हुई है इसकी खोज गहराई और बारीकी से होनी चाहिये। जैसा कि नेपाल के राजकीय संग्रहालय में जो इस नाम वाले प्रन्य की प्रति उपलब्ध पाठ से भिन्न प्रकार की बतलाई जाती है उसका भली भाँति अध्ययन किया जाय। इसी तरह अंग विज्जा आदि कई ग्रन्थ ऐसे उपलब्ध है जिनका विषय-विवेचन प्राचीन प्रश्न व्याकरण से कई अंशों में मेल खाता हुआ नजर आता है। जैसलमेर, पाटण भण्डार आदि में कुछ रचनायें ऐसी हैं जिनका नाम या विषय प्रश्न व्याकरण जैसा है। उदाहरणार्थ पाटण भण्डार के सिंघवी पाड़े के. ताड़पत्रित प्रति नं०६ में प्रश्न व्याकरण टीका चूड़ामणि और लीलावती का उल्लेख पाटण भण्डार सूची में इस प्रकार मिलता है
१-प्रश्न व्याकरण टीका (चूड़ामणि) प० १५६. Beginning :
शास्त्रस्यारमेऽशेषदुःखप्रक्षालनार्थ मंगलार्य च मंगलं चाभिप्रेतार्थमिष्ट - देवता। Colophon :
एवं स्वभेदेन विभजेद् यावत् परिज्ञानमिति ।
चूडामणि टीका समाप्ता। प्रथा २३०० श्लोकानां ॥ २-लीलावती प० १५६-१६३ Colophon :-प्रश्न व्याकरण टीकायां लीलावत्यां मयूरवाहिनी ।
जैसलमेर भण्डार में भी जयपहुड़, प्रश्न व्याकरण आदि कुछ रचनायें हमें देखने को मिली थीं और मुनि जिनविजयजी जयपाहुड़ को छपवा भी रहे थे।
मेरे कहने का आशय यह कदापि नहीं है कि वे रचनायें प्राचीन प्रश्न व्याकरण से संबंधित है पर खोज की दिशा-ऐसी जितनी भी रचनायें प्राप्त हो उनके अध्ययन से----कुछ न कुछ मिल सकेगी ही इमी संभावना से मैंने इन रचनाओं की चर्चा की है। प्रो० श्री हीरालाल कापड़िया ने 'आगमो नुं दिग्दर्शन' के पृ० २०० में यह लिखा है कि कल्प भाष्य की गाथा १३०८ व ११ में कोतक, भूति, प्रश्न, प्रश्नाप्रश्न, निमित्त का उल्लेख है तथा उच्छिष्ट में अंगूठे के नख, कपड़ा, दर्पण, हाथ, तलवार, पानी, भीत, आदि में देवता उतर आते है और उनसे प्रश्न पूछना-यह पसिण शब्द से सम्बन्धित है। स्थानांग में प्रश्न व्याकरण दशा के १० अध्ययनों के नामों में खोमग पसिण भी एक है। सम्भव है उसका आशय यह हो कि कपड़े में उतरकर अवतीर्ण आये हुये देवता