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________________ [ १३१. ] के गुण है। मुझे आत्मा का प्रत्यय उतना ही स्पष्ट होता है जितना कि एक मूर्त द्रव्य का।" लाइवनित्स ने चेतन को प्रधान मोनोड़ और जड़ को मॉनोड़ों से निर्मित बताते हुए कहा-तत्त्व दो प्रकार के हैं-जड़ और चेतन।। ___.."चेतन वस्तुओं में एक प्रधान मोनोड आल्मा है । "जड़ वस्तुएं इस तरह केन्द्रित नहीं होती किन्तु वे केवल मोनोडों की राशि से निर्मित होती है"। आगे उन्होंने आत्मा के स्वरूप का विवेचन करते हुए कहा है-"हम अपने आन्तरिक जीवन में ऐसे निरवयव, अभौतिक द्रव्य को पाते हैं, आत्मा ऐसा ही द्रव्य है।" ३ रेने डेकार्ट ने आत्मा को स्वीकार करते हुए कहा है--"मैं विचार करता हूँ इसलिए मैं हूँ यह अनुभववाद है।" • इमैनुएल कान्ट तो और भी आगे बढ़ गये है। वे आत्मा को इन्द्रियगम्य नहीं मानते। वे कहते हैं-"हमें अतीन्द्रिय वस्तुओं, स्वलक्षणों का चेतना पर प्रभाव डालने के ढंग से अतिरिक्त वस्तुओं का प्रागनुभव ज्ञान नहीं हो सकता । ज्ञान प्रत्यक्ष की अपेक्षा रखता है और इन्द्रियों द्वारा निज स्वलक्षणों का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता।"५ जैन-दर्शन ने भी मूलभूत तत्त्व दो ही माने हैं-जीव, अजीव। जीव को अमूर्त और अजीव को मूर्त भी माना है तथा आत्मा को स्वसंवेदन ग्राह्य माना है । द्रव्य के गुण और पर्याय के स्वरूप का भी पृथक विवेचन किया है। जो द्रव्य के साथ रहे वह गुण, और परिवर्तित हो वह पर्याय। १--पाश्चात्य दर्शन का इतिहास पृ० ७५ (मैं कथिली, अनुवादक-मधुकर ) २-पाश्चात्य दर्शन का इतिहास 'कथिली' पृ० १२७ ३- " " " " , पृ० १२४ ४- " " " " " पृ० १२२ ५- , , , , , पृ० १६२ ६-तत्त्वदा नव तत्त्वावतार, (जैन०प्र०५ सू०४) ७-अरूपिणो जीवाः अजीवा रूपिणोऽपि (जैन० प्र०५ सू०४१४६) ८-सहभाविधमों गुणः, पूर्वोत्तराकारपरित्यागादानपर्यायः। ( जैन० प्र०१सू०४०४४)
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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