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________________ [ १२८ ] नहीं है। फिर भी पाश्चात्य-दर्शन का इतिहास इतना व्यवस्थित और अन्य उपलब्ध होता है जिससे उनकी दार्शनिक मान्यताओं का यथार्थ अध्ययन किया जा सकता है। . दर्शन युग का सूत्रपात दोनों ही देशों में साथ-साथ होता है। पश्चिम में यूनान के दार्शनिकों के समय से और पूर्व में उपनिषदों के समय से दार्शनिक चिन्तन व नेतिक व्यवहार का व्यवस्थित प्रतिपादन हुआ। भारतीय दर्शन के जितने विवेच्य विषय है-तस्व मीमांसा, प्रमाण-मीमांसा, आचार-मीमांसा आदि, पाश्चात्य-दर्शन के भी लगभग वे ही हैं। भारतीय दर्शनों में जहाँ सृष्टि की रचना, आत्मा का अस्तित्व, ईश्वर, मुक्ति, पुनर्जन्म आदि की चर्चा है तो पाश्चात्य दर्शन भी इनसे खाली नहीं है। यह माम्य भारतीय दार्शनिकों के लिए गौरव का विषय है। इसी साम्य को लेकर कई कहते हैं "पाश्चात्य-दर्शन भारतीय-दर्शन से प्रभावित रहा है।" और आज के इतिहासकार भी ऐमा मानते हैं। "पाश्चात्य-दर्शन का सूत्रपात ग्रीम में हुआ था। प्रारम्भ में तो ग्रीस की सभ्यता और संस्कृति व दर्शन सर्वप्राचीन तथा अप्रभावित माने जाते थे। लेकिन बीसवीं सदी के कई अन्वेषणों से विशेषतः भूगर्भ की खुदाई में प्राप्त कई महत्त्वपूर्ण वस्तुओं से यह सिद्ध हो गया है कि प्राचीन ग्रीस पर मिल और बेबिलोनिया का प्रभाव निःसन्देह पड़ा है। और यह भी बहुत सम्भव है कि भारतीय संस्कृति व विचारधारा ही ईरान, मिस और बेबिलोनिया होती हुई ग्रीम पहुँची हो।" समान तथ्यों को देखकर ऐसी धारणा का होना स्वाभाविक ही है। और फिर भारतीय दर्शन की प्राचीनता सिद्ध हो तब तो और भी सहज है, लेकिन यह तथ्य कुछ संशोधन मांगता है कि बाद में चाहे किसी का किसी पर प्रभाव रहा हो लेकिन प्रारम्भिक उद्भव सर्वथा स्वतन्त्र ही होना चाहिये। ई० पू० छठी शताब्दी में हुए. हैरेक्लीटम की स्याद्वाद सम्बन्धी मान्यता को हम केसे मानें कि उनकी अपनी नहीं है ? जब कि भगवान् महावीर का काल उनके बाद का है और जैनेतर भारतीय दर्शनों में स्याद्वाद का नामोल्लेख तक नहीं मिलता। अगर यह मानें कि पार्श्वनाथ की परम्परा में जो स्यादवाद का विकसित रूप था, उसी का प्रभाव हैरेक्लीट्स पर पड़ा, यह भी कम अंचता है। सर्वथा अपरिचित और अनजान व्यक्तियों का किसी के विचारों से प्रभावित हो जाना एक अनहोनी कल्पना ही है। अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते १-(पाश्चात्य-दर्शन पृ०२)
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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