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________________ [ १२० ] जा सकता है कि उन उन वादियों की मान्यताएं क्या थी । संक्षेप में उनका उल्लेख नीचे दिया जा रहा है। आर्द्र कुमार और गोशालकः -- भगवान् के पास लौटते समय मु० आ० की भेंट सर्वप्रथम आजीवक सम्प्रदाय के आचार्य गोशालक से हुई । गोशालक :- हमारे ' सिद्धान्त के अनुसार ठंडा पानी पीने में, बीज आदि धान्य खाने में, अपने लिए तैयार किये आहार खाने में, स्त्री संभोग में और अकेले बिचरने वाले साधू को दोष नहीं लगता। भोजन की भांति स्त्रीसंभोग भी मानसिक क्षुधा तृप्ति के लिए करने में कोई आपत्ति नहीं है । आर्द्रक - ( प्रत्युत्तर की भाषा में कहा ) यदि ऐसा हो तो वह व्यक्ति गृहस्थ से भिन्न नहीं होगा, गृहस्थ भी इन सब कामों को करते हैं। फिर सन्यास ग्रहण मात्र आजीविकोपार्जन का हेतु रह जाता है । इस प्रकार अनेक प्रश्नोत्तरों का क्रम उस समय चला । आर्द्रक और बुद्ध भिक्षु बौद्ध भिक्षु - नित्य २०० स्नातक भिक्षुओं को भोजन कराने वाले मनुष्य महान् पुण्य स्कन्धों का उपार्जन कर महासत्ववेत आरोग्य देव होते हैं। मोटे भेड़ को मार नमक लगा तेल में तल कर पीपल डाल यदि भिक्षु को खिलाए उसमें दोष नहीं है। कुमार को कुम्हड़ा जान छेदे, सेके उसमें पाप नहीं लगता। ऐसा मोक्ष बौद्ध भिक्षुओं को काल्पनीय है । मुनि आर्द्र क — रंगे हाथों दान देने वाला भला महान् पुण्य स्कन्ध कैसे उपार्जित करेगा ? हिंसा किसी अवस्था में कभी भी प्रशस्य नहीं हो सकती । कुमार को कुम्हड़ा जानना असम्भव है। जैन मुनि कभी भी जीव के अणु भाग को भी कष्ट देकर भिक्षा लेना नहीं चाहते, एतदर्थ वे पूरे सावधान रहते हैं । आदि.. आर्द्र कुमार और वेदवादी बेदवादी द्विज:- जो हमेशा दो हजार स्नातक ब्राह्मणों को भोजन कराता है वह पुण्य - राशि अर्जित कर देव बनता है, ऐसा वेद - वाक्य है। मुनि आर्द्रक - बिल्ली की भांति खाने की इच्छा से घर-घर भटकने वाले दो हजार स्नातकों को खिलाता है वह नरकवासी होकर फाड़ने- चीरने को तड़पते हुए जीवों से भरे नरक को प्राप्त होता है, देवलोक को नहीं । दयाधर्म को त्याग कर हिंसाधर्म स्वीकार करने वाले शील से रहित ब्राह्मणों को भी जो मनुष्य भोजन कराता है वह एक नरक से दूसरे नरक में परिभ्रमण करता है । १- सू० २२६ वृ० प० १४२ ।
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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