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[ १०६ ] देंगे। स्थूल दृष्टि से निम्नोक्त पंक्तियों में ही जेन-दर्शन का नवनीत आ जाता है कि शब्द आत्मा' नहीं अनाम है। रूपी है । भाषा वर्गणा के पुद्गलों का विशिष्ट परिणाम है।
भाषा का आकार वन जैसा होता है। क्योंकि वह समग्र लोक में व्याप्त होती है, लोक वप्राकार है। लोकान्त में उसका अन्त होता है। वैसे भाषा दो समय में बोली जाती है। कान स्पष्ट शब्दों को सुनते हैं। समग्र भारतीय साहित्य में सर्वत्र शब्द-विज्ञान के बीज बिखरे पड़े हैं। लेकिन जैन-दर्शन का शब्द विज्ञान बहुत ही मौलिक चिन्तन से गर्भित है।
१-भगवती १३-७। २-पन्न० ११११५